रविवार, 30 दिसंबर 2012

YAADEN (69) यादें (६९)

वर्ष 1970 में PUBLIC INTERMEDIATE COLLEGE के प्रधानाचार्य चन्द्र लाल शाह; उपाचार्य दर्शन लाल वर्मा थे। हमें सोहनलाल शर्मा , हिंदी, हसीन अहमद अंग्रेजी, BD NETHANI PHYSICS व गणित, सृष्टि नाथ मल्होत्रा CHEMISTRY, और रिज्वाइन हक सिद्धिकी BIOLOGY पढ़ाते थे। सिद्धिकी साहब बाद में देहरादून किसी PG COLLEGE में चले गए; तो SN MALHOTRA, BIOLOGY पढ़ाने लगे; सत्य प्रकाश अरोड़ा नए आये, वे PHYSICS पढाने लगे। HIGH-SCHOOL की अन्य कक्षाओं,  तथा INTERMEDIATE कक्षाओं को पढ़ाने वाले अन्य अन्य गुरुजन वेदप्रकाश जी, मदन मोहन जी, आनंद प्रकाश जी, सुरेन्द्र कुमार शर्मा, सुरेन्द्र कुमार गैरोला, भगवान सिंह सैनी,  इन्दर सिंह खत्री, और PTI  रतन सिंह सैनी थे। कक्षा 6 से 8 वाले कुछ गुरुजन के नाम मुझे याद नहीं है।
 मेरी कक्षा IX C उत्तरी दिशा नीचे की पंक्ति में मध्य में दक्षिण को खुलता हुआ काफी बड़ा कमरा था।
 अगस्त से अक्तूबर तक   चौक बाज़ार से लेकर एक-डेढ़ किलोमीटर उत्तर से दक्षिण, पूरी MILL-ROAD गन्ने से भरी बैलगाड़ी, बुग्गी , और TRACTOR-TROLLEY; और बरसात का कीचड; पैदल तो किसी तरह निकल जाते ; या फिर RESHAM-FARM के अन्दर से निकल जाते; पर CYCLE पर  काफी मुश्किल से जा पाते थे। 

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 23 दिसंबर 2012

YAADEN (68) यादें (६८)

जुलाई 1970 में, मैं  कक्षा IX में दाखिला लेने डोईवाला गया; वहां भगवानसिंह जी सैनी मिले शक्ल से मैं उनको पहचानता था, वे भी शायद मुझे पहचान गए थे। उन्होंने दाखिले में मेरी मदद की। मेरे विषय भी उन्होंने ही भरे; मुझे राजस्थान की जानकारी थी, यहाँ अनिवार्य हिंदी, अनिवार्य अंग्रेजी, अनिवार्य गणित, एक तृतीय भाषा और किसी GROUP के तीन ऐच्छिक विषय जैसे की PHYSICS CHEMISTRY MATHS कुल 7 पढने पड़ते थे; किन्तु उत्तर प्रदेश में केवल 5 ही थे। हिंदी अंग्रेजी व् गणित अनिवार्य ही थे और उनका पाठ्यक्रम राजस्थान के एच्छिक विषयों जैसा था। ये तीनो विषय एच्छिक के रूप में नहीं थे। इसी तरह तृतीय भाषा अलग नहीं थी, बल्कि हिंदी का तृतीय प्रश्न-पत्र शुद्ध संस्कृत ही था। गुरूजी ने मुझसे विषय पूछे, तो मैं राजस्थान के हिसाब से बोला- NON-MEDICAL तो उन्होंने PHYSICS, CHEMISTRY, BIOLOGY भर दिया; क्योंकि गणित तो सबके लिए एक ही था। विद्यालय का पूरा नाम था- गन्ना-कृषक पब्लिक इंटरमीडिएट कॉलेज; डोईवाला। ये सोंग नदी के पश्चिमी किनारे पर SUGAR MILL से पूर्व दिशा में है। SUGARMILL के ठीक पश्चिम में देहरादून से हरिद्वार को जाने वाली उत्तर-दक्षिण RAIL-LINE है। भानियावाला लौट कर मैंने बड़े मामाजी को बताया की भगवानसिंह जी ने मेरा दाखिला कराया है; और मेरे पास FEES कम थी; जो उन्होंने खुद जमा करवा दी। तो मामाजी ने मुझे समझाया गुरूजी कहा करो। 
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रविवार, 16 दिसंबर 2012

YAADEN (67) यादें (६७)

File:Varahagiri Venkata Giri.jpg1969 में हुकुमरानحکمران  congress party  के एलानिया उम्मीदवार علانیہ امیدوار N Sanjeeva Reddy को शिकस्त  देकर इंदिरा गाँधी की ज़ाती पसंदीदा ذاتی  پسندیدہ Varah Venkat Giri मुल्क के सदरصدر-ے-ہند  मुन्तखिबمنتخب  हुए। नतीजतन نتیزتن CONGRESS की दो बैलों की जोड़ी से अलाहिदा  होकर गाय-बछड़े वाली नयी कांग्रेस (INDIRA-CONGRESS ) का जन्म हुआ। इसके कुछ बाद, राजस्थान में मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया के वक़्त किसानों का आन्दोलन हुआ; जेल भरो कार्यक्रम में श्रीगंगानगर जिले के किसानों को भरतपुर की जेलों में भेजा गया था। उस दरम्यानدرمیان  आन्दोलनकारी FILM हमराज़ में महेंद्र कपूर का गया गीत :-_ 
न मुंह छुपा के जियो; और न सर झुका के जियो। نہ منہ چھپا کے جیو، اور نہ سر جھکا کے جیو
ग़मों का दौर भी आये तो, मुस्करा के जियो।। ؛ گموں کا دور بھی اے تو، مسکرا کے جیو  
खूब बजाते थे। 
फरवरी 1970 में मैं जम्मू की यात्रा से लौटा; और अप्रैल/ मई में आठवीं के इम्तिहान امتحاں होने थे। प्रेम मंडा, कृष्ण मंडा, नरेंद्र बिश्नोई, साहबराम और मेरे बीच होड़ थी। मेरे छोटे मामा सुभाष चन्द्र जी (16.04.2011को विकासनगर में देहांत) की शादी भी अप्रैल में होनी थी। मेरे गुरुजन का विचार था की, मैं शादी में न जाऊं। माँ-पिताजी और मेरी इच्छा जाने की थी। बारात डोईवाला से ऋषिकेश गई थी। ये मेरी पहली ऋषिकेश यात्रा थी; पहाड़ो से उतरती हुई गंगाजी में नहाने का रोमाँच अलग तरह का ही था। 
शादी में जाने की वजह से आठवीं की विदाई PARTY और GROUP-फोटो से मैं महरूम محروم हो गया था। आठवीं जमात  ضمات मैंने प्रथम स्थान 1204/1600 से उत्तीर्ण की। इस तरह 25NP में 3 साल का सुहाना सफ़र पूरा करके, मैं वापस देहरादून को मुड़ गया।  

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रविवार, 9 दिसंबर 2012

YAADEN (66) यादें (६६)

 फरवरी 1970 में मैं अपने पिताजी की चाची (श्रीमती रामप्यारी देहांत जनवरी 2012 रायसिंहनगर ) के साथ पहली बार जम्मू गया। रिश्तेदारी में पिताजी के मामा सुन्दरदास जी की बेटी (पुष्पा बुआ) की शादी थी। रायसिंहनगर से रात 8 बजे METER-LINE से वाया श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ बठिंडा सुबह 3.30 बजे। फिर अमृतसर की बस, वहां से पठानकोट तक फिर जम्मू तक की बस। बक्षीनगर रोलकी रहने वाले सबके नाम और रिश्ते  और डाक के पते मुझे मालूम थे।  घर में अक्सर चर्चाएँ होती रहती थीं; और सारे खतो-ख़िताब पर हिंदी के पते मुझसे ही लिखवाए जाते थे। 
उस वक़्त दादा दुर्गादास जी भी वहीँ रहते थे। दादा सुन्दर दास जी जी के पुत्र (ताया साईंदास जी); समधी जयराम दास (जराम शाह) कैलाश ताई जी, उनका पौत्र चन्ना, उनकी बहन मूर्ति दादी के बेटे (चाचा मनीराम, मदन, बाबूलाल), उनके भाई पूरणचंद (पुन्नू शाह) अपने लड़कों चूनी, मणि, रोशन(गुल्ला) के साथ डिगयाना में रहते थे; राष्ट्रीय राजमार्ग 1A पर उनकी ज़मीन थी। सभी रिश्तेदारों ने मेरी खूब आव-भगत की थी। 
 KC CINEMA में फिल्म सच्चाई (शम्मीकपूर, साधना, संजीवकुमार, प्राण) देखी। 
पंडित ताराचंदजी   की बड़ी बेटी (आज्ञा बुआजी) भी बक्षीनगर ही रहती थीं। उनके लड़कों श्याम और मंगत से मेरी अच्छी घुट गई थी। मेरी नानी कौशल्या देवी के छोटे भाई बंसीलाल जी भी, अपने बड़े भाई भगतराम जी की मौत के बाद  काँगड़ा से बक्षीनगर आ चुके थे।  
उसी दरम्यान चाचा ओम प्रकाश जी के बड़े साले सुरेन्द्र कुमार की दूसरी शादी विश्वानाथ की बड़ी बहिन विमला से तय होने पर; चाचा जी और चाची आशारानी भी नानुवाला से शादी की तैयारी करने जम्मू आ गए थे। सुरेन्द्र कुमार जी की पत्नी गुजर गयी थी, और तीन लड़के थे, वे मेरे साथ घुल-मिल गए थे।  उनके छोटे भाई कृष्णलाल और उनसे छोटा प्रेम @ जीती था; जो रायसिंह नगर चाचा रोशन लाल व् सुरेश लाल के साथ पढ़ा था।   मैं भी चाचा-चाची के साथ उनके घर( खिलोने वाली गली; नईयां दी ढक्की ਨਾਈਯਾਂ ਵਾਲੀ ਢੱਕੀ ) और शादी की खरीददारी में जाता था।
 उन दिनों मफतलाल का कपडा मशहूर था। जम्मू में राजमाष चावल 60 पैसे की प्लेट थी।         जम्मू से वापसी मैं चाचा जी के साथ ही आया ; पठानकोट तक बस और आगे रेल में। मार्च में होली के आस-पास विमला की शादी हो गई, मैं भी बाराती था। मेरी बुआ सत्या भी बारात के साथ जम्मू चली गयी थी।  

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रविवार, 2 दिसंबर 2012

YAADEN (65) यादें (६५)

 मेरे पिताजी को साधू-संतों और राहगीरों से लगाव था। रायसिंह नगर के रास्ते में कोई पानी की व्यवस्था नहीं थी; साथ में ही लेकर चलना पड़ता था। सुनारों वाली ढाणी 26NP और 11TK दोनों डिग्गियां मेरे होश में ही बनी थीं। विजय नगर वाली सड़क तो 1970 में बनी। पैदल या ऊँठ से लगभग 2 घन्टे का रास्ता था। पिताजी डब्बा और डोरी डिग्गियों पर बांधते ही रहते थे; क्योंकि हफ्ते दस दिन में डिब्बा-डोरी गायब हो जाते थे। शायद पिताजी के मन पर दादाजी के प्यासा हालत में मरने का गहरा सदमा था। 
 एक दिन पिताजी बाहर गए थे; और माँ शायद पानी लेने डिग्गी या नहर पर गई थी। मैं घर के बड़े कमरे में झाड़ू निकलने लगा। दीवारों के दक्षिण-पश्चिम कोने में गेहूं की आठ बोरियां एक के ऊपर एक थीं। उनके नीचे से झाड़ू लगते ही , आठों बोरियां मेरे ऊपर गिर गई। गनीमत ये कि,  कोठरी नुमा गुफा बन गई; और उसमे  उकडूं होकर; मैं अन्दर से आवाजें लगाने लगा। माँ आ गई, उन्हें मेरी आवाज़ तो सुन रही थी, पर पता नहीं चल रहा था की, किधर से आ रही है। गिरी हुई बोरियां देखकर माज़रा समझ आया; तो हिम्मत करके उन्होंने एक बोरी का कोना खींचा; मैं झट से निकल आया। 
शाम को वाकया सुन कर पिताजी काफी सहम गए थे।
 गाँव में आने वाले साधू-महात्माओं या राहगीरों की पिताजी कद्र करते थे। मेरे 25NP पढने के दौरान गाँव में एक भगवाधारी भगत जी अक्सर आते थे; वे बलराम गोदारा के घर ठहरते थे; गर्मियों में हमारे घर के खुले आँगन में और सर्दियों में हमारे 30'X12' के कमरे में 2-3 घंटे एकतारा पर भजन कीर्तन होता। उनका गया राजस्थानी भजन करमा जाटनी (अपने पिता की अनुपस्थिति में भोली-भाली करमां द्वारा श्री कृष्ण जी को भोग के लिए मनुहार करना) हम सबको बहुत पसंद था-
थाल भर ल्याई खीचड़ो; ऊपर  घी  की  बाटकी  !
जीमों म्हारा श्याम धणीजी, म्हे हाँ बेटी जाट की !! 

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रविवार, 25 नवंबर 2012

YAADEN (64) यादें (६४)

1968 के आस-पास दोनों मामाजी में अलगाव हो गया; ये केवल भौतिक रूप में ही नहीं, बल्कि दोनों मानसिक तौर पर भी एक-दूसरे से अलग हो गए थे। मेरी माता ने इसके लिए मेरे बड़े मौसा मदनलाल जी साहनी को जुम्मेवार माना था। पिताजी जब भी उर्दू में ख़त लिखते, या हिंदी में मुझसे लिखवाते; उसमें बड़े मामाजी (देहावसान सितम्बर 1994) को तो लिखा जाता था, कि तुम बड़े हो छोटे से अगर कोई गलती हो भी गई हो; तो उससे ज्यादा नाराज़ नहीं होना चाहिए। इसी तरह छोटे मामाजी (देहावसान अप्रैल 2011) को लिखते, कि तुम छोटे हो, बड़े की इज्जत करनी चाहिए। और भी इसी तरह की ठंडी मीठी बातें हुआ करती थीं। अपनी समझ के हिसाब से मैं छोटे मामाजी वाले खतों पर बड़े मामाजी का और बड़े मामाजी वाले ख़त पर छोटे मामाजी का पता लिख देता था; पता नहीं मेरी ये तरकीब उनका मनमुटाव कम करने में मददगार हुई या कि नहीं ! 

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रविवार, 18 नवंबर 2012

YAADEN (63) यादें (६३)

25NP के SCHOOL दिनों में नहर में नहाना, आँधियों में बेर और मोर पँख इकट्ठे करना, नहर में किसी का CYCLE और बस्ते समेत गिर जाना; या फिर CYCLE PUNCTURE होने पर भरी दोपहरी में घसीटते हुए, पसीने से तर-बतर, गिरते-पड़ते, भूखे-प्यासे देर से घर पहुंचना; ये सब मामूल वाक़यात होते थे। 
सर्दियों में माचिस साथ रखते थे; जिससे ज़रुरत होने पर आग ताप लेते थे। इस माचिस की वजह से कभी-कभी बीड़ी के सूटे भी होने लगे थे। गुरुजन को भनक लगने पर विद्यालय के अलग कमरे में सबकी पेशी हुई; और ये दुर्व्यसन आगाज़ से पहले ही अंजाम तक पहुँच गया। गुरुजन के प्रति अगाध आदर की वजह से उनसे बड़ा डर लगता था कि ; हमारे आचरण के विषय में गुरूजी क्या सोचेंगे ! 
आजकल पढ़-सुनकर और देख कर अजीब सा लगता है; गुरु-शिष्य का स्नेह, आदर, विश्वास और उत्तरदायित्व कहाँ खो गया है ? भरत व्यास और कवि प्रदीप जी की पंक्तियाँ कचोटने लगती हैं -
 आज के इस इंसान को क्या हो गया ?
इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया ??

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 

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रविवार, 11 नवंबर 2012

YAADEN (62) यादें (६२)

सातवीं जमात के शुरुआत में ही, JULY या AUGUST 1968 में हम लोग ज्वालाजी के दर्शन करने गए। अपने माँ-बाप के साथ ये मेरी पहली तीर्थ यात्रा थी। वही रायसिंहनगर से छोटी LINE पर रात 8 बजे चल कर गंगानगर हनुमानगढ़ होते हुए सुबह 3.30 बजे बठिंडा। फिर बड़ी लाइन पर धुरी, लुधियाना, जालंधर। आगे बस पर होशियार पुर, ऊना और फिर ज्वालाजी। कुल 4 रेलगाड़ियाँ और 3 बसें। आज की तुलना में अजीब सा लगता है।
 ज्वालाजी में मैंने गरम पानी वाली गुरु गोरखनाथ जी की डिबिया का सुन रखा था। वह देखने को मैं बड़ा लालायित था। ज्वालाजी दर्शन के बाद हम कांगड़ा गए, मुझे अच्छी तरह से याद है, हम कांगड़ा पुरोहितों के पास रुके थे, खेत में ढाणीनुमा कच्चा कमरा हमें दिया था, खाने बनाने का सामान हमारे पास था।शायद रक्षा-बंधन भी उसी दरम्यान थी। 
वहां से हम पठानकोट होते हुए अमृतसर गए, वहां भी रात रूककर सरोवर में स्नान करके स्वर्ण-मंदिर मत्था टेका था। उस दर्शन की याद आज भी मेरे मन में बसी है। 1984 की घटनाओं के बाद पता नहीं क्यों मेरा मन वहां जाने का नहीं करता; हालाँकि कई मौके बने पर मेरा मन वितृष्णा से भर जाता है।
 26 जनवरी 2010 अपनी बड़ी बेटी गीतेश के जोर करने पर हम तलवंडी साबो गुरुद्वारा साहिब में गए, अच्छी तरह रात रुके, सुबह यूँ ही टहलते हुए प्रदर्शनी की तरफ चला गया, वहाँ जरनैल सिंह भिंडराँवाले को महिमा मंडित करने वाले चित्र और साहित्य देखकर मन वितृष्णा से भर गया। 
सब कुछ हमारे राजनेताओं का कराया धराया है। कब तक भोली जनता को ठगा जाता रहेगा ? 
गणेशजी, रिद्धि-सिद्धि, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, हम सबको सदबुद्धि और ज्ञान प्रदान करें

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
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रविवार, 4 नवंबर 2012

YAADEN (61) यादें (६१)

छटी कक्षा के दौरान ही अक्तूबर 1967 में हमारे HEADMASTER दुलाराम जी के ससुराल मन्नीवाली मैं मामी जी के साथ दीवाली की छुट्टियाँ बिताने गया। साथ उनके बच्चे संतोष और राकेश भी थे। रायसिंह नगर से दोपहर एक बजे की रेलगाड़ी से सदुलशहर तक SECOND CLASS के डिब्बे में। (उस ज़माने रेल में I, II, III CLASS होती थी।) वहाँ उनके आढ़तियों की दुकान पर गए; तो उन्होंने मन्निवाली तक JEEP किराये पर पर लेकर दी लगभग दिन छिपने पर हम मन्नीवाली पहुंचे।
  मामीजी के पिताजी का नाम मनीराम यादव था। उनके बड़े भाई का नाम रामस्वरूप और छोटा लालचन्द था। उनकी एक भतीजी का नाम स्नेह था। मैं उन्हें यथा-योग्य नाना-नानीमामा-मामी ही कहता था। लालचंद जी अध्यापक थे। 1982-84 में जब मैं लालगढ़ जाटान था तो वे MIDDLE SCHOOL पन्नीवाली में HEADMASTER थे। उनके  साथ काफी बाद तक मेरे अच्छे सम्बन्ध रहे। रावला में संतोष और राकेश की शादी में उनके परिवार के साथ मुलाकातें हुईं थी। बाद में एक दो पारिवारिक पंचायतो के सिलसिले में गंगानगर व् विजयनगर 35GB, मैं साथ गया था। 
मन्नीवाली मैंने वहां छुट्टियों का खूब लुत्फ़ उठाया। खेतों में उनके साथ कपास चुगते हुए मैं अपनी बेसुरी आवाज़ में जोर-ज़ोंर से गाता था- 
अ ऐमेरे वतन के लोगो; 
ज़रा आँख में भर लो पानी; 
जो शहीद हुए है, उनकी
 ज़रा याद करो क़ुरबानी !

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
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रविवार, 28 अक्तूबर 2012

YAADEN (60) यादें (६०)

छटी कक्षा के दरम्यान फरवरी 1968 में मामा मनोहरलाल जी शर्मा की शादी में मैं, उनकी बहिन (सीता मामी), पंडित रघुनाथदास जी और विश्वानाथ के साथ दिल्ली गया। बारात के लिया बाकायदा कपडे धोने का साबुन निमंत्रण के रूप में दिया गया था। उसके बाद ये परंपरा बंद हो गयी। 
 METER-LINE तक बठिंडा VIA हनुमानगढ़ आगे बड़ी गाड़ी। किशन गंज STATION पर उतर कर तांगे पर गए थे- ओमप्रकाश शर्मा; T-223A ईदगाह ROAD, सदर थाना; DELHI-6 आज भी मुझे जबानी याद है; कारण ये कि सारे खतो-ख़िताब मेरे हाथ से ही होते थे। दिल्ली में ये श्रीमती मूर्तिदेवी शर्मा का घर था, जो पंडित पुरुषोत्तमदास जी की बहिन थी; इस नाते मेरे माता-पिता भी उनको बुआ कहते थे; उनके बेटे ओमप्रकाश का विवाह पंडित जगन्नाथ जी की बहिन की बड़ी बेटी (मैना) के साथ (श्री योगराज शर्मा 26 सेवक आश्रम रोड; देहरादून) हुआ था।
  बारात सदर से KING'S WAY CAMP गयी थी, रात को वापस आने लगे तो मुझे अजीब सा लगा। हम लोग अच्छे से घूमे थे; जब हम BIRLA मंदिर में थे; तो लगभग उसी समय जापान के सम्राट का भी दौरा था। 
मैं दिल्ली से र 7/- की एक ATTACHEE और 3/- की कोयले वाली PRESS खरीद कर लाया था। किसी शहर में यह मेरी पहली बड़ी खरीददारी थी।

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991

रविवार, 21 अक्तूबर 2012

YAADEN (59) यादें (५९)


25NP की पढाई के दौरान एक खास बात ये रही ; की SCHOOL भले ही कोई CYCLE पर  या पैदल जाते रहे हों; नवरात्रों में शाम को SCHOOL से आने के बाद रात का खाना पोटली में बांधते, और पैदल रायसिंहनगर की राह पकड़ लेते। वहां  तक़रीबन 1 बजे तक श्री राम नाट्य क्लब की रामलीला देखते और रात को खेतों में ककड़ी-मतीरे खाते हुए, 2.30- 3 बजे तक घर पहुंचते, सुबह उठकर फिर स्कूल जाते। पर कभी किसी साथी ने इस नींद या थकावट के कारण नागा नहीं किया था। 1970 में आठवीं पास करने पर यह क्रम अपने आप समाप्त हो गया।

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991

रविवार, 14 अक्तूबर 2012

YAADEN (58) यादें (५८)

विद्यालय में झाड़ू-बुहारी; पेड़ों को पानी आदि काम उस समय ख़ुशी-ख़ुशी किये जाते थे। माँ-बाप भी इसे अच्छा मानते थे। मैंने भी एक पेड़ लगाया हुआ था; उसकी देखभाल मैं ही करता था। एक दिन मैं पानी डालने गया; उसमे तो पहले से किसी ने पानी डाला हुआ था। मैंने शिकायत कर दी। गुरूजी ने मुझे समझाया ; तो मैं अनमने मन से चुप हो गया। 
छटी में एक शब्द आया- FOREIGN गुरूजी ने बताया- दूसरा देश; मुझे  समझ में आया- दूर का देश;
आठवीं में गुरूजी ने सवाल पूछा- 
IS PAKISTAN A FOREIGN COUNTRY ?
तेजा सिंह ने जवाब दिया- YES;  PAKISTAN IS A FOREIGN COUNTRY !
मैंने फ़ौरन कहा- NO; PAKISTAN IS NOT A FOREIGN COUNTRY !


जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991

रविवार, 7 अक्तूबर 2012

Yaaden (57) यादें (५७)

कक्षा 7 के समय पंचायत समिति स्तर पर MIDDLE SCHOOLS की अंतरप्रतियोगिताएं MB MIDDLE SCHOOL  रायसिंह नगर में हुईं थीं। वहां प्रधानाध्यापक भागीरथ चौधरी और सुरेन्द्र कुमार शर्मा PTI थे। हिंदी की वाद-विवाद में मैंने प्रथम स्थान ; तथा अंग्रेजी वार्तालाप में मैंने और साहब राम ने प्रथम स्थान पाया था। हमारा संवाद पाकिस्तान के तानाशाह अयूब खान और मिस्र के राष्ट्रपति नासिर के बीच भारत-पाकिस्तान के बीच 1965 की युद्ध घटना पर आधारित था। मैं  राष्ट्रपति नासिर की भूमिका में अयूब खान को समझा रहा था : -
 HELLO MISTER AYUB GOOD MORNING
BUT MISTER NASIR MY HEART IS TIL YARNING

 बीच की एक पंक्ति मुझे हलकी सी याद है-
NOT ONLY AMERICA, BUT RUSIA TOO

31PS ; उडसर मुकलावा और भादवावाला के टीमें खेलो में आगे थीं।
उस साल जिला-स्तरीय प्रतियोगिता के लिए हम मोहनपुरा (श्रीगंगा नगर से 8KM उत्तर-पश्चिम )आये थे। अगले साल हम कीकरवाली (रायसिंह नगर से 12 KM उत्तर-पूर्व )और महियाँ वाली (श्रीगंगा नगर से 12 KM दक्षिण) गए थे, उसमें हिंदी में मैंने जिले में दूसरा स्थान लिया था।
 काशीराम गुरूजी हमारे साथ थे। वापसी में गंगानगर हम तीनों ने महावीर भोजनालय RAILWAY-ROAD में ऊपर की मंजिल में खाना खाया था।  AZAD-CINEMA और गणेश में FILM मेरी भाभी और काजल देखी थी। 
फिल्म KAJAL के बेह्तरीन गाने आज भी दिल-ओ-दिमाग पर जादू करते है-
मेरे भैया; मेरे चंदा; मेरे अनमोल रतन; तेरे बदले मैं ज़माने से कोई चीज़ न लूं

 दिल की गहराई में जाकर मदहोश करने वाली रफ़ी साहब की  आवाज़- 
छू लेने दो नाज़ुक होठों को; कुछ और नहीं, जाम है ये।
कुदरत ने जो हमको बक्शा है; वो सबसे हसीं पैगाम है। 
अच्छों को बुरा साबित करना, दुनिया की पुरानी आदत है। 

. .  .  .   .    .   .     .      .    .   .    माना के बहोत बदनाम हूँ मैं
और सबसे बढ़कर मीनाकुमारी पर फिल्माया बेहतरीन भजन जिसे सुनते-सुनते मैं मूर्छित (HYPNOTIZE ) होने लगता हूँ- 
तोरा मन दर्पण कहलाये; भले-बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए।
जग से चाहे भाग ले कोई; मन से भाग न पाए। 
मन से कोई बात छुपे न मन के नैन हज़ार। 
मन उजियारा; जग उजियारा;
इस उजलेपन पर, काली मैल न जमने पाए।  

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991
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रविवार, 30 सितंबर 2012

YAADEN (56) यादें (५६)

छटी की पढाई शुरू होने पर पिताजी मेरे लिए पीतल का छोटा सा कमण्डल लाये ; माँ उसमे रोटी और पनीर  लपेट कर रखती; मैं उसे cycle के handle पर टांग कर ले जाता; सब लड़के उस डोलू को सराहते थे। शायद पूरे school लड़कों में से उस तरह का बर्तन सिर्फ मेरे पास ही था। अधिकांश लडके कपडे की पोटली में ही खाना लाते थे। 
आधी छुट्टी में नहर के किनारे बैठ कर खाने का स्वाद अविस्मरणीय है। कभी मन करता तो किसी पेड़ की टहनी पर चढ़ कर खाते थे। दूसरी खास चर्चा ये होती थी की; मेरे पास खट्टा-मीठा लस्सी का पनीर होता था,  दूध का फीका-फीका पनीर मुझे पसंद नहीं था।मेरे साथी दोस्त भी यदा-कदा चखते थे। 
 उस वक़्त तक PLASTIC के जूता-चप्पल का चलन नहीं हुआ था। गाँव में जब मेरे लिया नरम सुनहरी गुलाबी रंग के PLASTIC के SANDLE 6/- रुपये कीमत के आये तो; सबने सराहा था:-
रामजी के लडके के सैंडल 6 रुपये के !
रामजी गे छोरे गा सैंडल 6 रिपियाँ गा !
ਰਾਮਜੀ ਦੇ ਮੁੰਡੇ ਦੇ ਸੈਂਡਲ 6 ਰਾਪੈਯਾਂ ਦੇ !
 मैं बड़े चाव से पहनता था। उसके बाद उतने मुलायम और सुन्दर प्लास्टिक के जूते-चप्पल मैंने आज तक नहीं पहने। 


जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  

Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991

रविवार, 23 सितंबर 2012

YAADEN (55) यादें (५५)

उस दौरान के दूसरे साथियों में 25NP के जसवंतसिंह, सुरजीतसिंह, अच्छर सिंह,  33NP के बूटासिंह, दलीपसिंह, अशोकसिंह, सतजंडा के हंसराज, राजाराम, बल्लेवाला के हंसराज, ठंडी के साहब राम, रामकिशन, 57NP ओमप्रकाश;  हमसे आगे वालों में 34NP नरेंद्र सिंह, 55NP सोहन लाल राहड़, पीछे वालों में गुरजंटसिंह, महेंद्रसिंह, श्यामसिंह, मोहनसिंह, जसवीरसिंह, सुल्तानराम, 57NP कृष्णचन्द्र के नाम याद हैं। 25NP के कश्मीरी ब्रह्मण परिवारों को 3 या 4 लड़कियाँ भी हमारे साथ 3 साल पढ़ीं।
ओमप्रकाश मेघवाल 57NP  कुछ साल पहले नानुवाला पंचायत का सरपंच था।  जसवंतसिंह POLICE में था, इसी महीने SEPTEMBER 2012 में रायसिंहनगर में देहांत हो गया। नरेंद्र VOLLY-BALL और कबड्डी का खिलाडी था। उससे भी अक्सर 2-4 साल बाद मुलाकात हो जाती है। रामकिशन मसानीवाला में रहता है; गुरजंटसिंह रायसिंहनगर में अध्यापक है, श्रीराम, गुरमेल, विश्वनाथ, और तेजासिंह का ज़िक्र पहले भी हो चुका है। विश्वनाथ 2002 में गुजर गया। तेजासिंह संधू  श्रीगंगा नगर में ADVOCATE है। गुरमेल सरदारपुरा बीका (खिचियाँ) में रहता है।

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar  Srivijaynagar  9414094991