रविवार, 29 अप्रैल 2012

YAADEN(34) यादें (३४)

सामान्यतः मै शरारती नहीं था किन्तु जिज्ञासु अवश्य था. पिताजी के साथ दुकान के छोटे मोटे कम करता था. लालटेन व चिमनी रोज़ साफ करना मेरा कम था. दुकान पर लालटेन टांगने के लिए छत से नीचे आधी उंचाई तक सूतली की रस्सी बाँधी रहती थी, जिसके नीचे लोहे का  कुंडा (S)लगा था. एक दिन पिताजी मुझे बिठा कर काम गए. मैं झूलने का विचार किया. थड़ी पर चढ़ कर कुंडा दायें गाल में डाला; और झूल गया. लोहे का कुंडा मेरे गाल के आर-पर हो गया. पता नहीं क्यों ? न तो मुझे दर्द हुआ, न ही डांट पड़ी.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
Ashok, Tehsildar Hanumamgarh ९४१४०९४९९१
MY HOUSE NANUWALA AT GLOBE 73.450529E; 29.441214 N  

रविवार, 22 अप्रैल 2012

YAADEN (33) यादें (३३)

हमारे घर से उत्तर दिशा में रायसिखों के घर थे, करनैलसिंह जरनैल सिंह (केलि जेली) की दिवार हमारे साथ लगती थी, उस वक़्त कुंदन सिंह, लद्दासिंह (लद्दू) भी वहीँ रहते थे बाद में उन्होंने पश्चिम दिशा में मामा हरिराम कडवासरा से उत्तर में चिपता हुआ बनाया था; शमीर सिंह का परिवार कुछ दूर नहर के पास था; वे लोग शराब का धंधा करते थे, अक्सर पुलिस आती रहती थी; उत्तर-पश्चिम में नहर के दोनों ओर सरकनों में शराब की भट्ठियां बरामद होती रहती थी; ये शाह-मात और लुका-छिपी चलती ही रहती थी;करनैल की शादी की मुझे पूरी होश है; फाजिल्का से उनके काफी रिश्तेदार आये थे; ;उनमे से नारायण सिंह (नैणा) ने शराब पीकर काफी उत्पात किया था तलवारें भी चली थीं; कोई भागता हुआ दीवार फांद कर हमारे घर में से भाग रहा था कोई गालियाँ निकाल रहा था, कोई पकड़ने को पीछे दौड़ रहा था किसी के खून निकल रहा था, कोई तलवार लहरा रहा था; रोने-धोने पकड़ने-पकड़वाने गालियाँ निकालने छुड़ाने में औरतें भी शामिल थीं;  करनैल की पत्नी हमारे साथ घर परिवार जैसी घुल-मिल गई थी; मै उसे जग्गो भाभी कहता था; बाद में इन लोगों को RCP
में ज़मीनें ALOT हो गई थीं वे सरदारपुरा बीका (खिचियाँ) चले गए; करनैल सिंह का परिवार अभी भी हमारे पड़ोस में है;

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
      Ashok, Tehsildar Hanumamgarh ९४१४०९४९९१
MY HOUSE NANUWALA AT GLOBE 73.450529E; 29.441214 N  

रविवार, 15 अप्रैल 2012

YAADEN (32 )यादें (३२)

ग्राम पंचायत नानुवाला में 33 35 36 37 38  55 56 व 57 NP के चक थे, 1962 से 65 श्योकरण सहारण 38
NP (बल्लेवाला) सरपंच थे; जो मेरे मामाजी वेदप्रकाश के मित्र होने के नाते मेरे मामा ही थे; 1965 के चुनाव में उनके सामने हनुमान बिश्नोई 57NP थे; तकनीकी कारणों से श्योकरण जी का नामांकन ख़ारिज हो गया; कृष्णलाल सुथार 36NP (नानुवाला) हमारे उम्मीदवार हार गए; उस समय तक हनुमान जी की छवि अच्छी नहीं थी, सरपंच बनने के बाद उन्होंने शराब छोड़ दी; पुणे जाकर  ओशो रजनीश का शिष्यत्व में भगवे वस्त्र और नाम स्वामी आनंद  ऋषि ग्रहण कर लिया था* फिर 13 साल चुनाव नहीं हुए; 1978 में श्योकरण सहारण ने जसवीर सिंह 56NP को 46 मतों से हराया* तब तक मेरे ननिहाल का परिवार पूरी तरह भनियावाला/डोईवाला जा चुका था, मैं अपनी पढाई पूरी करके देहरादून से वापस आकर SBBJ रायसिंहनगर में अस्थाई काशिएर था;उससे पहले 1976 में NATIONAL FERTILIZERS LIMITED पानीपत में JUNIOR CHEMICAL OPERATOR के पद पर चयन होकर तूतीकोरन जाने का आदेश आ चूका था; जहाँ माता-पिता ने मुझे नहीं जाने दिया, फिर नहरी पटवारी के पद पर चयन होकर प्रशिक्षण पूर्ण कर चुका था; AIR INDIA में assistant flight purser की लिखित प्रतियोगिता में सफल हो चुका था;    और मेरी शादी भी हो चुकी थी*                    

  जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

रविवार, 8 अप्रैल 2012

YAADEN (31) यादें (३१)

31दिसंबर 1964 को हम सब नए स्कूल के बड़े वले कमरे में डाली गई मिटटी की कुटी कर रहे थे उस दिन से आगे छुट्टियाँ होनी थीं; कृष्ण मंडा और नत्थू सुथार एक एक ईंट लेकर कुटी कर रहे थे, मैं तीसरी में था और वे दोनों पांचवी में ; मुझे अच्छी तरह याद है कमरे का उत्तर-पश्चिम कोना था, मैं हाथों से अर्ध गीली मिटटी थपक रहा था; शायद हो सकता है, कि उन्होंने मुझे टोका हो या न टोका हो ! मेरे दायें हाथ के थपके के ऊपर कृष्ण की ईंट पड़ गई;  मेरी कनिष्ठ का नाख़ून उतर गया और खून निकलने लगा; वे दोनों घबरा गए थे; मै न तो रोया न ही उनसे कोई शिकायत की; शाम को वे दोनों SKIN OINMENT की TUBE लकर घर आये और मुझे देकर गए;; मेरे माता-पिता ने भी इसे सामान्य घटना के रूप में लियाथा*  वैसे भी कृष्ण के पिता लूणा जी मंडा सभ्रांत व शांत प्रकृति के थे हालाँकि उसके  दादा हमीरा जी और चाचा शंकर की छवि उतनी अच्छी नहीं थी; नत्थू के पिता हनुमान जी सुथार की मेरे पिताजी के साथ अच्छी उठ-बैठ थी*    दायें हाथ की कनिष्ठा का नाखून आज भी उस घटना का गवाह है*            
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

रविवार, 1 अप्रैल 2012

YAADEN (30) यादें (३०)

कक्षा दो में हिंदी की किताब में एक पाठ था सुजाता की खीर.
महात्मा बुद्ध को सुजाता की खीर खाकर बोध हुआ कि, दुःख का कारण क्या है? इस अंतिम पंक्ति के साथ पाठ पूरा हो गया था. मैं बहुत बेचैन हो गया था, उस कारण को जानने को. ये बेचैनी चार साल चली. कक्षा छह
में आकर मैंने पड़ा कि, दुःख का कारण है; इच्छा. उसके बाद ये सिद्धांत मै याद रखने का प्रयत्न करता आया हूँ !
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ