रविवार, 30 दिसंबर 2012

YAADEN (69) यादें (६९)

वर्ष 1970 में PUBLIC INTERMEDIATE COLLEGE के प्रधानाचार्य चन्द्र लाल शाह; उपाचार्य दर्शन लाल वर्मा थे। हमें सोहनलाल शर्मा , हिंदी, हसीन अहमद अंग्रेजी, BD NETHANI PHYSICS व गणित, सृष्टि नाथ मल्होत्रा CHEMISTRY, और रिज्वाइन हक सिद्धिकी BIOLOGY पढ़ाते थे। सिद्धिकी साहब बाद में देहरादून किसी PG COLLEGE में चले गए; तो SN MALHOTRA, BIOLOGY पढ़ाने लगे; सत्य प्रकाश अरोड़ा नए आये, वे PHYSICS पढाने लगे। HIGH-SCHOOL की अन्य कक्षाओं,  तथा INTERMEDIATE कक्षाओं को पढ़ाने वाले अन्य अन्य गुरुजन वेदप्रकाश जी, मदन मोहन जी, आनंद प्रकाश जी, सुरेन्द्र कुमार शर्मा, सुरेन्द्र कुमार गैरोला, भगवान सिंह सैनी,  इन्दर सिंह खत्री, और PTI  रतन सिंह सैनी थे। कक्षा 6 से 8 वाले कुछ गुरुजन के नाम मुझे याद नहीं है।
 मेरी कक्षा IX C उत्तरी दिशा नीचे की पंक्ति में मध्य में दक्षिण को खुलता हुआ काफी बड़ा कमरा था।
 अगस्त से अक्तूबर तक   चौक बाज़ार से लेकर एक-डेढ़ किलोमीटर उत्तर से दक्षिण, पूरी MILL-ROAD गन्ने से भरी बैलगाड़ी, बुग्गी , और TRACTOR-TROLLEY; और बरसात का कीचड; पैदल तो किसी तरह निकल जाते ; या फिर RESHAM-FARM के अन्दर से निकल जाते; पर CYCLE पर  काफी मुश्किल से जा पाते थे। 

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
Ashok 9414094991, Tehsildar ; Sri Vijay Nagar 335704 
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रविवार, 23 दिसंबर 2012

YAADEN (68) यादें (६८)

जुलाई 1970 में, मैं  कक्षा IX में दाखिला लेने डोईवाला गया; वहां भगवानसिंह जी सैनी मिले शक्ल से मैं उनको पहचानता था, वे भी शायद मुझे पहचान गए थे। उन्होंने दाखिले में मेरी मदद की। मेरे विषय भी उन्होंने ही भरे; मुझे राजस्थान की जानकारी थी, यहाँ अनिवार्य हिंदी, अनिवार्य अंग्रेजी, अनिवार्य गणित, एक तृतीय भाषा और किसी GROUP के तीन ऐच्छिक विषय जैसे की PHYSICS CHEMISTRY MATHS कुल 7 पढने पड़ते थे; किन्तु उत्तर प्रदेश में केवल 5 ही थे। हिंदी अंग्रेजी व् गणित अनिवार्य ही थे और उनका पाठ्यक्रम राजस्थान के एच्छिक विषयों जैसा था। ये तीनो विषय एच्छिक के रूप में नहीं थे। इसी तरह तृतीय भाषा अलग नहीं थी, बल्कि हिंदी का तृतीय प्रश्न-पत्र शुद्ध संस्कृत ही था। गुरूजी ने मुझसे विषय पूछे, तो मैं राजस्थान के हिसाब से बोला- NON-MEDICAL तो उन्होंने PHYSICS, CHEMISTRY, BIOLOGY भर दिया; क्योंकि गणित तो सबके लिए एक ही था। विद्यालय का पूरा नाम था- गन्ना-कृषक पब्लिक इंटरमीडिएट कॉलेज; डोईवाला। ये सोंग नदी के पश्चिमी किनारे पर SUGAR MILL से पूर्व दिशा में है। SUGARMILL के ठीक पश्चिम में देहरादून से हरिद्वार को जाने वाली उत्तर-दक्षिण RAIL-LINE है। भानियावाला लौट कर मैंने बड़े मामाजी को बताया की भगवानसिंह जी ने मेरा दाखिला कराया है; और मेरे पास FEES कम थी; जो उन्होंने खुद जमा करवा दी। तो मामाजी ने मुझे समझाया गुरूजी कहा करो। 
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रविवार, 16 दिसंबर 2012

YAADEN (67) यादें (६७)

File:Varahagiri Venkata Giri.jpg1969 में हुकुमरानحکمران  congress party  के एलानिया उम्मीदवार علانیہ امیدوار N Sanjeeva Reddy को शिकस्त  देकर इंदिरा गाँधी की ज़ाती पसंदीदा ذاتی  پسندیدہ Varah Venkat Giri मुल्क के सदरصدر-ے-ہند  मुन्तखिबمنتخب  हुए। नतीजतन نتیزتن CONGRESS की दो बैलों की जोड़ी से अलाहिदा  होकर गाय-बछड़े वाली नयी कांग्रेस (INDIRA-CONGRESS ) का जन्म हुआ। इसके कुछ बाद, राजस्थान में मुख्यमंत्री मोहनलाल सुखाडिया के वक़्त किसानों का आन्दोलन हुआ; जेल भरो कार्यक्रम में श्रीगंगानगर जिले के किसानों को भरतपुर की जेलों में भेजा गया था। उस दरम्यानدرمیان  आन्दोलनकारी FILM हमराज़ में महेंद्र कपूर का गया गीत :-_ 
न मुंह छुपा के जियो; और न सर झुका के जियो। نہ منہ چھپا کے جیو، اور نہ سر جھکا کے جیو
ग़मों का दौर भी आये तो, मुस्करा के जियो।। ؛ گموں کا دور بھی اے تو، مسکرا کے جیو  
खूब बजाते थे। 
फरवरी 1970 में मैं जम्मू की यात्रा से लौटा; और अप्रैल/ मई में आठवीं के इम्तिहान امتحاں होने थे। प्रेम मंडा, कृष्ण मंडा, नरेंद्र बिश्नोई, साहबराम और मेरे बीच होड़ थी। मेरे छोटे मामा सुभाष चन्द्र जी (16.04.2011को विकासनगर में देहांत) की शादी भी अप्रैल में होनी थी। मेरे गुरुजन का विचार था की, मैं शादी में न जाऊं। माँ-पिताजी और मेरी इच्छा जाने की थी। बारात डोईवाला से ऋषिकेश गई थी। ये मेरी पहली ऋषिकेश यात्रा थी; पहाड़ो से उतरती हुई गंगाजी में नहाने का रोमाँच अलग तरह का ही था। 
शादी में जाने की वजह से आठवीं की विदाई PARTY और GROUP-फोटो से मैं महरूम محروم हो गया था। आठवीं जमात  ضمات मैंने प्रथम स्थान 1204/1600 से उत्तीर्ण की। इस तरह 25NP में 3 साल का सुहाना सफ़र पूरा करके, मैं वापस देहरादून को मुड़ गया।  

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रविवार, 9 दिसंबर 2012

YAADEN (66) यादें (६६)

 फरवरी 1970 में मैं अपने पिताजी की चाची (श्रीमती रामप्यारी देहांत जनवरी 2012 रायसिंहनगर ) के साथ पहली बार जम्मू गया। रिश्तेदारी में पिताजी के मामा सुन्दरदास जी की बेटी (पुष्पा बुआ) की शादी थी। रायसिंहनगर से रात 8 बजे METER-LINE से वाया श्रीगंगानगर हनुमानगढ़ बठिंडा सुबह 3.30 बजे। फिर अमृतसर की बस, वहां से पठानकोट तक फिर जम्मू तक की बस। बक्षीनगर रोलकी रहने वाले सबके नाम और रिश्ते  और डाक के पते मुझे मालूम थे।  घर में अक्सर चर्चाएँ होती रहती थीं; और सारे खतो-ख़िताब पर हिंदी के पते मुझसे ही लिखवाए जाते थे। 
उस वक़्त दादा दुर्गादास जी भी वहीँ रहते थे। दादा सुन्दर दास जी जी के पुत्र (ताया साईंदास जी); समधी जयराम दास (जराम शाह) कैलाश ताई जी, उनका पौत्र चन्ना, उनकी बहन मूर्ति दादी के बेटे (चाचा मनीराम, मदन, बाबूलाल), उनके भाई पूरणचंद (पुन्नू शाह) अपने लड़कों चूनी, मणि, रोशन(गुल्ला) के साथ डिगयाना में रहते थे; राष्ट्रीय राजमार्ग 1A पर उनकी ज़मीन थी। सभी रिश्तेदारों ने मेरी खूब आव-भगत की थी। 
 KC CINEMA में फिल्म सच्चाई (शम्मीकपूर, साधना, संजीवकुमार, प्राण) देखी। 
पंडित ताराचंदजी   की बड़ी बेटी (आज्ञा बुआजी) भी बक्षीनगर ही रहती थीं। उनके लड़कों श्याम और मंगत से मेरी अच्छी घुट गई थी। मेरी नानी कौशल्या देवी के छोटे भाई बंसीलाल जी भी, अपने बड़े भाई भगतराम जी की मौत के बाद  काँगड़ा से बक्षीनगर आ चुके थे।  
उसी दरम्यान चाचा ओम प्रकाश जी के बड़े साले सुरेन्द्र कुमार की दूसरी शादी विश्वानाथ की बड़ी बहिन विमला से तय होने पर; चाचा जी और चाची आशारानी भी नानुवाला से शादी की तैयारी करने जम्मू आ गए थे। सुरेन्द्र कुमार जी की पत्नी गुजर गयी थी, और तीन लड़के थे, वे मेरे साथ घुल-मिल गए थे।  उनके छोटे भाई कृष्णलाल और उनसे छोटा प्रेम @ जीती था; जो रायसिंह नगर चाचा रोशन लाल व् सुरेश लाल के साथ पढ़ा था।   मैं भी चाचा-चाची के साथ उनके घर( खिलोने वाली गली; नईयां दी ढक्की ਨਾਈਯਾਂ ਵਾਲੀ ਢੱਕੀ ) और शादी की खरीददारी में जाता था।
 उन दिनों मफतलाल का कपडा मशहूर था। जम्मू में राजमाष चावल 60 पैसे की प्लेट थी।         जम्मू से वापसी मैं चाचा जी के साथ ही आया ; पठानकोट तक बस और आगे रेल में। मार्च में होली के आस-पास विमला की शादी हो गई, मैं भी बाराती था। मेरी बुआ सत्या भी बारात के साथ जम्मू चली गयी थी।  

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रविवार, 2 दिसंबर 2012

YAADEN (65) यादें (६५)

 मेरे पिताजी को साधू-संतों और राहगीरों से लगाव था। रायसिंह नगर के रास्ते में कोई पानी की व्यवस्था नहीं थी; साथ में ही लेकर चलना पड़ता था। सुनारों वाली ढाणी 26NP और 11TK दोनों डिग्गियां मेरे होश में ही बनी थीं। विजय नगर वाली सड़क तो 1970 में बनी। पैदल या ऊँठ से लगभग 2 घन्टे का रास्ता था। पिताजी डब्बा और डोरी डिग्गियों पर बांधते ही रहते थे; क्योंकि हफ्ते दस दिन में डिब्बा-डोरी गायब हो जाते थे। शायद पिताजी के मन पर दादाजी के प्यासा हालत में मरने का गहरा सदमा था। 
 एक दिन पिताजी बाहर गए थे; और माँ शायद पानी लेने डिग्गी या नहर पर गई थी। मैं घर के बड़े कमरे में झाड़ू निकलने लगा। दीवारों के दक्षिण-पश्चिम कोने में गेहूं की आठ बोरियां एक के ऊपर एक थीं। उनके नीचे से झाड़ू लगते ही , आठों बोरियां मेरे ऊपर गिर गई। गनीमत ये कि,  कोठरी नुमा गुफा बन गई; और उसमे  उकडूं होकर; मैं अन्दर से आवाजें लगाने लगा। माँ आ गई, उन्हें मेरी आवाज़ तो सुन रही थी, पर पता नहीं चल रहा था की, किधर से आ रही है। गिरी हुई बोरियां देखकर माज़रा समझ आया; तो हिम्मत करके उन्होंने एक बोरी का कोना खींचा; मैं झट से निकल आया। 
शाम को वाकया सुन कर पिताजी काफी सहम गए थे।
 गाँव में आने वाले साधू-महात्माओं या राहगीरों की पिताजी कद्र करते थे। मेरे 25NP पढने के दौरान गाँव में एक भगवाधारी भगत जी अक्सर आते थे; वे बलराम गोदारा के घर ठहरते थे; गर्मियों में हमारे घर के खुले आँगन में और सर्दियों में हमारे 30'X12' के कमरे में 2-3 घंटे एकतारा पर भजन कीर्तन होता। उनका गया राजस्थानी भजन करमा जाटनी (अपने पिता की अनुपस्थिति में भोली-भाली करमां द्वारा श्री कृष्ण जी को भोग के लिए मनुहार करना) हम सबको बहुत पसंद था-
थाल भर ल्याई खीचड़ो; ऊपर  घी  की  बाटकी  !
जीमों म्हारा श्याम धणीजी, म्हे हाँ बेटी जाट की !! 

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