रविवार, 29 जनवरी 2012

YAADEN(21) यादें (२१)

मुझे धुंदली याद है गाँव के दुसरे लोगों के साथ मेरे चाचा बालकृष्ण जी व् मामा वेद प्रकाश जी भी लाणा (ऊँची किस्म की जलाऊ लकड़ी) लेने जाते थे. शाम को जाकर आधी रात तक उंठो पर लादकर लाते
थे. जरुरत लायक घर रखकर बाकि रायसिंहनगर बेचते थे.
राजस्थान नाहर (NOW IGNP) की खुदाई का काम शुरू होने पर मेरे छोटे मामा  सुभाषचन्द्र जी ने वहाँ काम किया था. उनकी CYCLE के सामने मिटटी के तेल की चिमनी लगी थी. हमारे घर संदूक में चाचा बालकृष्ण जी की पेंट कमीज़ थी. मेरी संभल में उन्होंने उसे कभी नहीं पहना. सफ़ेद-काली बिंदी वाली वो पेंट बाद में कटवा कर मैंने पहनी थी.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
      

रविवार, 22 जनवरी 2012

YAADEN (20) यादें(20)

मुझे तो याद नहीं, पर बलवीर सिंह की चर्चा अक्सर गाँव में चलती थी.शायद वो हमारी प्राथमिक पाठशाला के पहले अध्यापक थे हमारे घरों में उनका नाम सम्मान से लिया जाता था.HOATAA HAI KI   
 कच्ची पहली और पक्की पहली उन्होंने मुझे पढाया हो. लगभग पचास बरस बीतने पर भी, अक्सर मेरे मन में उनके प्रति श्रद्धा उमड़ आती है. हमारे घर में दुकान के पीछे वाले कमरे में थोड़े बहुत खेती के छोटे औजार रहते थे मोटाराम नायक हमारे खेत का काम करता था; वह उसमे ही अपना भी थोडा-बहुत सामान रखता था* कच्ची पहली का कायदा और उसके पीछे लिखी दो बिल्लियों की कहानी भी मुझे सुनाया करता था मेरे चाचाजी व माँ भी मुझे कायदा पढाया करते थे माँ ने बताया था कि स्कूल में मेरा दाखिला मझले मामाजी ने कराया था.बाद में ओमप्रकाश जी जगरूप सिंह जी, सेवक सिंह संधू, भैराराम माकड़ के नाम मुझे याद है. सेवकसिंह जी व भैराराम जी की लिखावट से मै प्रभावित था. ओमप्रकाशजी सहयोगी  प्रकृति  के थे* उसके बाद मैं भानियावाला चला गया था*
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

रविवार, 15 जनवरी 2012

YAADEN(19) यादें(१9)

शायद मैं SCHOOL नहीं जाने लगा था उस वक़्त रायसिंहनगर का KUMAR BROTHERS PETROL PUMP नहीं था NEW LIGHT CINEMA के आस-पास भी सब खली ज़मीं थी दक्षिण दिशा में PS नहर से वर्तमान अनूपगढ़ ROAD, RAILWAY LINE और श्रीविजयनगर की तरफ बीच की सारी जगह में  ईंट भट्ठों के बड़े खदान थे और ये दोनों सड़कें नहीं थी. मेरी संभल में वहां ईंट भट्ठे चला करते थे. शहर से नानुवाला की तरफ दक्षिण को निकालने पर सबसे  आखिर में बाल की चाय की दुकान थी एक बार मैं पिताजी और बड़े मामाजी के साथ था. रायसिंहनगर  से लौटते समय बाल के ढाबे पर चाय पीने के दौरान बड़े मामाजी से कांच का गिलास टूट गया इस पर बाल ने खूब हंगामा किया पिताजी बार-बार बीच-बचाव करते हुए उसे समझा रहे थे की तुम अपने गिलास के पैसे ले लो*
बाल का ढाबा KUMAR BROTHERS PETROL PUMP से नहर की पुलिया पार करते ही दक्षिण पश्चिम दिशा में पूर्वाभिमुख है* लगभग १९८० तक उसके सामने अजायबसिंह की चक्की थी*

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
 Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991     
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शुक्रवार, 13 जनवरी 2012

YAADEN (18)यादें (१८)

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लोहड़ी का त्यौहार आने पर छोटे- बड़े बच्चे घर-घर से लोहड़ी मांगते थे - 
सुन्द्रिये- मुंदरिये हो ! ਸੁੰਦ੍ਰਿਏ  ਮੁੰਦਰੀਏ  ਹੋ !
तेरा कौन वचारा हो !! ਤੇਰਾ ਕੌਣ ਵਚਾਰਾ  ਹੋ !!
दुल्ला भट्ठी वाला हो !!! ਦੁੱਲਾ ਭਟ੍ਠੀ  ਵਾਲਾ ਹੋ !!!
दूल्ले धी विहाई हो !!!! ਦੁੱਲੇ ਧੀ ਵਿਹਾਈ  ਹੋ !!!!
प्राप्त लकड़ियों और मूंगफली आदि से गली में लोहड़ी जलाई जाती थी घर-घर में सब अपने -अपने पूर्वज-पितरों को ध्यान करके घर के सभी सदस्य अपने- अपने लकडियो के मुट्ठे अग्नि में डालते थे. हम बच्चों के लिए लोहड़ी की अग्नि में सुए गर्म करके मूंगफली, गज्जक, रेवाड़ी, पतासे, खोपरा, छुहारे, चीनी के मीठे व् रंग-बिरंगे खिलोने व कभी कभार बर्फी या सख्त किस्म की मिठाई पिरो कर हांर बनाये जाते थे, दुसरे दिन सुबह नहा कर नए कपडे व हर पहन कर सब घरों में जाकर बड़ों के चरण- स्पर्श करने होते थे. किसी बच्चे या दुल्हन की पहली लोहड़ी होने पर विशेष कर हार बनाये जाते थे. इस बार मैं अपनी दोनों बेटियों की शादी के बाद पहली लोहड़ी होने पर वैसे ही हांर बनाना चाहता था मगर 10-11 जनवरी की रात मेरे पिताजी की  चाची  (श्रीमती रामप्यारी) का इन्तेकाल हो जाने के कारन हमारे  सूतक लग  जाने से लोहड़ी नहीं जलानी है ! 
सूर्य देव के दक्षिणायन होने का त्यौहार अग्नि में नई लकड़ी,  नए चावल, नए तिल और गुड समर्पित करके; हम भारतीय उस ऊर्जा दाता भगवन भास्कर के, अपने इस उत्तरी गोलार्ध में लौटने पर; उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हैं ; इसी दिन के इंतज़ार में भीष्म पितामह 6 मास तक बाणों की शैया पर पड़े रहे थे ! 
सभी को सूर्य देव अपना बल और तेज प्रदान करें, इसी प्रार्थना के साथ-
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
 Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991     
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रविवार, 8 जनवरी 2012

YAADEN(17) यादें(१७)

मेरे ननिहाल से पश्चिम व दक्षिण वाले बिश्नोई सुथार जाट बावरियों को मैं मामा /मामी नाना /नानी और हमारे घर से पूर्व पश्चिम व उत्तर को बसने वाले बावरी जटसिख रायसिख व रामदासियों  को चाचा/चाची कहता था चाचा ओमप्रकाश जी की शादी की मुझे पूरी याद है उससे पहले
हालत बिगड़ चुके थे शादी में हमारी शिरकत काफी कम थी अगरचे
जाती तौर पर हमारे घर उनका पूरा आना जाना था और मामा दीनानाथ आनंद के साथ वो खाना खाने भी आये थे रायसिंहनगर से डाक्टर मेघराज,दीनानाथ कोहली, सीताराम साबुनवाले व हुकमी उस शादी में आये थे. मुझे याद है कुतर की मशीन के हत्थे पर रखकर हुकमी ने गैस(PERTOMAX) जलाया और ड्योढ़ी के नीचे लटके सरिये में टांगा था; उस दूधिया तेज रौशनी में हम सब बच्चे खेल रहे थे !   
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
      
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रविवार, 1 जनवरी 2012

YAADEN (16) यादें (१६)

होलाष्टक से पहले ही चंग की थाप सुनने लगती थी शाम से देर रात
तक बावरियो के मोहल्ले में धमाल मचता वहां देहाती किस्म के स्वांग लोगों के बारे में बनाये जाते थे एक दो बार मेरे पिताजी और चाचाजी के बारे में भी स्वांग बने थे पर इनका बुरा न मानकर हंसी ठट्ठे में लेते थे होली दाह की सिर्फ बातें सुनी थी झगडे के वहम से मुझे वहां जाने की मनाही थी ये इत्तेफाक है; की मैं आज तक नानुवाला की होली-दाह में शिरकत नहीं हुआ.
होली के दिन सारे गाँव में चंग काफिला सारे घरों में घूमता गता-बजाता 
था बाद में सब एक दूसरे से मिलने और राम-राम करने एक दूसरे के घरों में जाते थे. 
अंग्रेजी नव-वर्ष २०१२ की शुभकामनाएं !Photo: Pichkari ki Dhar,
Gulal ki bauchhar,
Apno ka pyar,
Yahi hai yaaron holi ka tyohar.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
http://www.apnykhunja.blogspot.com/