रविवार, 25 नवंबर 2012

YAADEN (64) यादें (६४)

1968 के आस-पास दोनों मामाजी में अलगाव हो गया; ये केवल भौतिक रूप में ही नहीं, बल्कि दोनों मानसिक तौर पर भी एक-दूसरे से अलग हो गए थे। मेरी माता ने इसके लिए मेरे बड़े मौसा मदनलाल जी साहनी को जुम्मेवार माना था। पिताजी जब भी उर्दू में ख़त लिखते, या हिंदी में मुझसे लिखवाते; उसमें बड़े मामाजी (देहावसान सितम्बर 1994) को तो लिखा जाता था, कि तुम बड़े हो छोटे से अगर कोई गलती हो भी गई हो; तो उससे ज्यादा नाराज़ नहीं होना चाहिए। इसी तरह छोटे मामाजी (देहावसान अप्रैल 2011) को लिखते, कि तुम छोटे हो, बड़े की इज्जत करनी चाहिए। और भी इसी तरह की ठंडी मीठी बातें हुआ करती थीं। अपनी समझ के हिसाब से मैं छोटे मामाजी वाले खतों पर बड़े मामाजी का और बड़े मामाजी वाले ख़त पर छोटे मामाजी का पता लिख देता था; पता नहीं मेरी ये तरकीब उनका मनमुटाव कम करने में मददगार हुई या कि नहीं ! 

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 

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