रविवार, 26 अगस्त 2012

YAADEN (51) ​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​यादें (५१)

​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​​राजकीय उच्च प्राथमिक  पाठशाला 25 NP में दुलाराम जी यादव प्रधानाध्यापक थे। महेंद्र सिंह जी; सोहनलाल जी; काशीराम जी; अवतार सिंह मान; अजमेरसिंह जी ; हरमेलसिंह जी; रतना राम जी  अध्यापक थे; दुलाराम जी नानुवालामें रहने के इच्छुक थे। मेरे ननिहाल का मकान खाली था; पिताजी ने उनको मकान दे दिया।
 इस नाते मैं उनको मामाजी कहने लगा था;मेरे देहरादून जाने के बाद वे रायसिंह नगर, शामगढ़ फिर रावला गाँव, और बाद में हनुमानगढ़ चले गये थे;  ये सिलसिला लगातार उनकी मौत तक जारी रहा; अभी भी उनके परिवार का हमारे साथ वैसा ही सम्बन्ध है।
 अवतार सिंह जी के पिता चड़त सिंह जी की स्कूल स्थापना और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका थी। उनके एक भाई हरवंत सिंह उस समय संगरिया में HEADMASTER थे; जो बाद में  RTS बन गए थे; अवतार सिंह जी हनुमानगढ़ जंकशन भगत सिंह चौक में मान ELECTRICALS और RAJASTHAN ELECTICS के नाम से दुकान करते हैं। उनका मुझ पर अब भी वैसा ही स्नेह है।     
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जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 19 अगस्त 2012

YAADEN (50) यादें(५०)

और इस तरह एक साल तक मैं, अलग तरह की दुनिया में रहने के बाद JUNE 1967 में वापस नानुवाला आ गया।  आते वक़्त भी बड़े मामाजी साथ थे; सहारनपुर तक बस, आगे अम्बाला, बठिंडा तक रेल , वहां से हिन्दुमलकोट की TRAIN पकड़ कर अबोहर, वहां से गंगानगर बस और फिर रायसिंहनगर पिताजी को मिलते ही मैं रोने लगा था। 

लौटने के बाद, मेरा और विश्वनाथ का एक साथ 25 NP में छटी कक्षा में दाखिला हुआ था। पिताजी मैं, विश्वनाथ और उसकी माता, जिनको मैं आज भी सीता मामी ही कहता हूँ ; हम चारों नानुवाला कोठी होकर नहर- नहर गए थे।  पिताजी मुझे 20" CYCLE दिलाना चाहते थे मैं न तो 20" और न ही 22" पर राज़ी था;  मैंने 24" की बड़ी साइकिल के लिए ही जिद की। चाचा ओम प्रकाश जी मेरे लिए ATLAS CYCLE 140/- में लेकर आये थे। फिर उसकी गद्दी नीची करके FITTING करवाई।

स्कूल जाते हुए हम हवा भरने के PUMP, PUNCTURE,    SOLUTION , WRENCH, BLADE  आदि ज़रूरत का सामान साथ रखते थे। यदा-कदा पटरी से साइकिल समेत नहर में भी कोई गिर जाता था। पैदल जाने वाले नहर वाले रास्ते के अलावा, नानुवाला से सीधे 33 NP होकर 25 NP के पुल पर पहुँच जाते थे। नानुवाला गाँव RD 4.500 पर है; नानुवाला कोठी  SAMEJA DISRTRIBUTERY की TAIL 68.500 RD पर है; और 25NP का पुल 55 RD पर है। इस तरह गाँव से हमारा SCHOOL 18 बुर्जी यानि 18000 FEET है।

 जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 12 अगस्त 2012

YAADEN 49 यादें(४९)

उन दिनों भनियावाला डोईवाला के आस-पास बालयोगेश्वर का काफी प्रचार था। जगह-जगह पर नारे लिखे थे- "सतयुग आएगा"; हमारे घर के सामने सड़क से उत्तर को मास्टर भगवान सिंह जी के घर के सामने वाले बरामदे में एक दुबले-पतले भगवाधारी बाबा जी मुंह में लोहे का आर-पार खोखला तिकोन लगाकर प्रचार करते रहते थे। उनकी शक्ल-ओ-सूरत मुझे वैसे ही नज़र आती है। उनका कोई अनुयायी मुझे नहीं लगा था। इन बालयोगेश्वर ने बाद में 14 वर्ष की आयु में, अपने से काफी बड़ी एक AMERICAN धनाढ्या से विवाह कर लिया था। 

 गुरु-पर्व पर जुलुस में, माता के मन्दिर; और ऋषिकेश ROAD BUS -स्टैंड  ऋषिकेश ROAD पर महंत जी के डेरे वाले भंडारे में भी मैं डोईवाला गया था। वैसे बड़ी मौसीजी के पास यदा-कदा चला जाता था। गौरीश्याम और इंद्रजीत के साथ मेरी अच्छी पटती थी। चौक बाज़ार में उस वक़्त जवाहर पुस्तक भंडार मशहूर था, वहां से खरीदना शान समझी जाती थी।

 देहरादून झंडेवाले मेले में भी हम गए थे। रानीपोखरी में दादा गुरदित्तामॉल का hotel था; और jolly-grant में दादा दुर्गादास जी परचून की दुकान करते थे। मैं उनके पास भी गया था।  1966 के लोकसभा चुनाव में हरिद्वार क्षेत्र से CONGRESS के सामने निर्दलीय प्रत्याशी नित्यानंद स्वामी थे; भानियावाला में नहर के पास उत्तर दिशा में महन्तों का जो घर है; वे उनके करीबी रिश्तेदार थे। उनका निशान शेर था।वे विजयी रहे थे। बाद में मैंने सुना कि वे congrass में शामिल हो गए।वे उत्तराखंड के मुख्य-मंत्री भी बने। 
तब तक कांग्रेस का नारा-
भारत वालो  आ नहीं जाना,  किसी के  तोड़े-मोड़े पर
सोच समझ कर; मोहर लगाना; दो बैलों के जोड़े पर।।
जनसंघ का नारा था-
देश का दीपक। प्रदेश का दीपक।।

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 5 अगस्त 2012

YAADEN 48 यादें(४८)

भानियावाला में उत्तर से दक्षिण नहर जाती थी; उसमे दक्षिण पश्चिम दिशा में नूनावाला नामक गाँव, का जब जिक्र होता तो मुझे लगता कि सब लोग गलत उच्चारण कर रहे है; नानुवाला बोलना चाहिए। इसी तरह से आगे उत्तर-पूर्व को  भोगपुर था; मुझे लगता की इसका सही नाम भोमपुरा {रायसिंहनगर-अनूपगढ़ मार्ग का एक गाँव} होना चाहिए। 
देहरादून से आने वाली UP ROADWAYS की सभी बसें ऋषिकेश तक तो जाती ही थीं; कुछ आगे नरेन्द्रनगर, पौड़ी, या LENSDOWN  भी जाती थीं। एक रानीपोखरी से ऊपर भोगपुर और एक JOLLY-GRANT से ऊपर उत्तर पूर्व को थानों भी जाती थी। सुबह 9 बजे के लगभग HIMACHAL परिवहन नाहन की बस शिमला से हरिद्वार और शाम को लगभग 5 बजे वापस जाती थी। 
भानियावाला-छिद्दरवाला -हरिद्वार सड़क उस समय नहीं थी। छिद्दरवाला हमारे SCHOOL के आगे से कच्चा रास्ता थ। हरिद्वार के लिए डोईवाला से रेलगाड़ियाँ थीं, या फिर ऋषिकेश होकर ही जाना पड़ता था;  बरसात , में टीन की चादरों के नीचे लगे हुए परनालों  से पीने का पानी भरते थे।  काले रंग की AMBASSADOR TAXI का प्रचलन वहां मैंने पहली बार देखा था।
अक्सर देहरादून की तरफ से मुर्दे लदी गाड़ियाँ भी आती थीं, जिनके परिजन ऋषिकेश जाकर दाह-संस्कार करते थे।
 ये सब कुछ मेरे लिए नया अनुभव था। 
जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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