रविवार, 25 दिसंबर 2011

YAADEN(15) यादें(१५)

नहर से खेतों में लगने वाले पानी के लिए पंचायती तौर पर हिसाब रखा जाता था इसके लिए मीराब चुना जाता था * उसे अमूमन दो पहर(छः घंटे ) पानी हर बारी का दिया जाता था* पूरी बारी में एक मुरब्बे को  पाँच या छः घंटे, नहर में पानी कम होने पर दूनी बारी, और नहर में पानी झारा होने पर एक बीघा भरने तक एक घंटा माना जाता था. पानी एक नाके  से दुसरे नाके तक दूर पानी ले जाने वाले काश्तकार भराई के रूप में एक मुरब्बा दूरी तक आधा घंटा भारी और लगते पानी के बाद पीछे किसी खेत में पानी तोड़ने पर निकाल के रूप में पाँच मिनट की कटाई.लोग अपनी ज़रुरत के मुताबिक एक दुसरे से पानी उधार लेन-देन करें या अपने ही किसी एक खेत का पानी किसी दुसरे खेत में लगावें सब हिसाब मीराब ही रखता था. एक बार हमारी दुकान के आगे कुछ लोग पानी के लेन-देन की चर्चा कर रहे थे, बातचीत के दरम्यान  बड़े मामा जी ने मीराब को कहा कि हम पहले अपने खेत में पानी लगा कर बाद में भरा भराया खाला बलराम गोदारा को दे देंगे.
और मैं सोच रहा था, कि पानी खेत में लगा लेने के बाद  ख़ाला भरा हुआ तो नहीं रहेगा; मामाजी ने उनके साथ चालाकी कर ली है.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

रविवार, 18 दिसंबर 2011

YAADEN (14) यादें (१४)

शायद  मैं  5 या  6 साल  का  था . चाचाजी  श्री  बाल कृष्ण   और  बड़े  मामाजी  स्वर्गीय  श्री  वेद प्रकाश  ने  सिनेमा  देखने  रायसिंहनगर जाने का कार्यक्रम बनाया. मैं इनके साथ हो गया. मुझसे पीछा छुड़ाना मुश्किल होगया था. हम तीनो घर से चल कर नहर तक पहुँच गए. उस दिन नहर सूखी थी. पश्चिमी किनारे वाली दो बेरियों के नीचे हम तीनो खड़े थे. मैं नहर पार करने की जिद कर रहा था. चाचाजी ने चाल चली और मुझे कहा घर जाकर भरजाई (मेरी  माता) को कहो -चाय बनाओ, चाय बनाओ फिर चाय पीकर चलेंगे मैं वापस घर आकर माँ को  चाय बनाने के लिए कहने लगा तो माँ ने हँसकर मुझे गले लगा लिया और मैं समझ गया था की वे मुझे बेवकूफ बनाकर सिनेमा देखने चले गए. 
इस पहली ज्ञात बेवकूफी की याद अक्सर गुदगुदा जाती है.

रविवार, 11 दिसंबर 2011

YAADEN (13) यादें (१३)

तक़रीबन स्कूल बनाने के वक़्त ही हमारे घरो के नोजवानो ने मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया मेरे चाचा मामा उनके संगी साथी व हम उम्र इनमें बड़ी उम्र के ठाकुर बलवंत  सिंह जी को प्रधान बनाया गया नहर से मशरक  व  स्कुल  से  जनूब में बनाया गया दुसरे तबके के लोग भी कुछ हद तक इसमें शामिल थे. रोजाना सुबह-शाम के अलावा मंगल के रोज़ शाम को खास कीर्तन भजन में देर तक औरतें
बच्चे शिरकत करते थे* शुरू में पंडित पुरुषोत्तमदास जी पूजा पथ करते थे उनके दिल्ली चले जाने के बाद ठाकुर बलवंत सिंह जी, मनोहरलाल जी, बलदेव सिंह जी, जीवनसिंह जी, भी ईद जिम्मेवारी को निभाते रहे. जन्माष्टमी सालाना ज़लसे के तोर मनाई जाती थी महिना  भर  पहले मिटटी
गोबर की लिपाई औरते  शुरू  कर देती थीं
आदमी  कली व साफ सफाई करते कम उम्र  वाले झंडिया बनाते व लगते रायसिंहनगर से  PETROMAX व  केले के पेड़ लाये जाते पढ़ाकू बच्चे दीवारों पर अन्दर बहार मज़हबी व अदबी लिखावटें व चित्रकारी करते औरते मिलकर माम्दस्ते में मसाले कूटती भजन गाती और पंजीरी बनाती*
घरो से दरिया चादरें दुपट्टे व साडियां लाकर कृष्णजी का पलना सजाया जाता
तालीम याफ्ता व पदाकु जवान LOUDSPEAKAR मंगाया जाता शाम को सबसे पहले 
"आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ; झांकी हिंदुस्तान की !
इस मिटटी से तिलक करो; यह धरती है बलिदान की!!" 
बजाया जाता था*
रात को कंस और कृष्ण कीकथा होती आधी रात को चंद्रमा आने पर अर्घ्य देकर प्रसाद व चरणामृत बाँटते सरे बच्चे बहार खेलते सब तबकों के लोग कमोबेश उस
रात शिरकत करते थे --
दिवाली  पर  हर  घर से मंदिर व नहर  /डिग्गी पर एक दिया जलाया जाता था-
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991
http://www.apnykhunja.blogspot.com/

रविवार, 4 दिसंबर 2011

YAADEN 12 यादें (१२)

मैं  SCHOOL कब जाने लगा? मुझे तो याद नहीं. माँ बताया करती थी की,
मैं SCHOOL जाने की जिद किया करता था. मामा केदारनाथजी ने मुझे भर्ती कराया था. मुझे याद है, नहर के पार पंचायत घर में SCHOOL लगता था. कई बार हम नहर के पास बबूल के पेड़ के नीचे बैठते थे.
बोरी घर से लेकर जाते थे. कभी कभी टाट-पट्टियाँ आ जाती थीं. आधी छुट्टी में उबला हुआ. गिलास घर से लेकर जाते थे. चौथी-पांचवी वाले ये काम करते थे. कुछ बच्चे फीका दूध पीते थे. कुछ घर से गुड, शक्कर या देसी खांड लाते थे. मेरे गिलास में मोटी दानेदार चीनी देखकर उनको अचरज होता था. वर्तमान स्थान पर सरपंच श्योकरण सहारण ने नीव रखी थी.  हम सब बच्चे प्रार्थना की मुद्रा में  हाथ जोड़े नहर से लकड़ी का पुल पार करके आये थे और हमें पातासों का प्रसाद  मिला था. सारा दृश्य आज भी मेरी आँखों में तैरता है. इस प्राथमिक विद्यालय से कई यादें जुडी हैं. एक हाल, एक सामान्य कमरा और एक छोटी रसोइनुमा कार्यालय और बड़ा सा खेल का मैदान बिना चारदीवारी. अब ये उच्च प्राथमिक है*
 जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ