रविवार, 18 नवंबर 2012

YAADEN (63) यादें (६३)

25NP के SCHOOL दिनों में नहर में नहाना, आँधियों में बेर और मोर पँख इकट्ठे करना, नहर में किसी का CYCLE और बस्ते समेत गिर जाना; या फिर CYCLE PUNCTURE होने पर भरी दोपहरी में घसीटते हुए, पसीने से तर-बतर, गिरते-पड़ते, भूखे-प्यासे देर से घर पहुंचना; ये सब मामूल वाक़यात होते थे। 
सर्दियों में माचिस साथ रखते थे; जिससे ज़रुरत होने पर आग ताप लेते थे। इस माचिस की वजह से कभी-कभी बीड़ी के सूटे भी होने लगे थे। गुरुजन को भनक लगने पर विद्यालय के अलग कमरे में सबकी पेशी हुई; और ये दुर्व्यसन आगाज़ से पहले ही अंजाम तक पहुँच गया। गुरुजन के प्रति अगाध आदर की वजह से उनसे बड़ा डर लगता था कि ; हमारे आचरण के विषय में गुरूजी क्या सोचेंगे ! 
आजकल पढ़-सुनकर और देख कर अजीब सा लगता है; गुरु-शिष्य का स्नेह, आदर, विश्वास और उत्तरदायित्व कहाँ खो गया है ? भरत व्यास और कवि प्रदीप जी की पंक्तियाँ कचोटने लगती हैं -
 आज के इस इंसान को क्या हो गया ?
इसका पुराना प्यार कहाँ पर खो गया ??

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 

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