रविवार, 27 मई 2012

YAADEN (38) यादें (३८)

मेरे मझले मामा श्री केदारनाथ जी को पारिवारिक दुश्मनी के कारण किसी ने धीमा ज़हर दे दिया था. वे अक्सर बीमार रहते   थे. यद्यपि मैं छोटा था, तथापि घरेलु चर्चाओं से मुझे इन बातों   का एहसास था. 
एक होली के दिन शायद 1965; मामाजी को ग्लूकोज़ इत्यादि चढ़ाया  जा रहा था, वे गली की और खिड़की के पास चारपाई पर लेटे थे, बाहर से उन पर रंग के छींटे पड़  गए, और नाम मेरा लग गया. छोटा होने के बावजूद मैं बार बार सफाई देना चाह रहा था, पर कोई भी भी मेरी बात पर ध्यान नहीं दे रहा था, और मैंने अपने आप को निस्सहाय पाया.
1965 में मेरे चाचा श्री बालकृष्णजी उनको साथ लेकर; उनके चचेरे भाई श्री रामपाल सेठी के पास कश्मीर स्वस्थ्य लाभ के लिए गए. उन्हें लाभ नहीं हो पाया और 1965 की लड़ाई से पहले उनका कश्मीर में ही देहांत हो गया. उसके बाद मेरे ननिहाल पूरी तरह से नानुवाला छोड़ कर भानियावाला (देहरादून) चले गए
मेरे चाचा श्री बालकृष्ण जी का  देहांत 05.05.2012 को हनुमानगढ़ में हो गया. 
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

रविवार, 20 मई 2012

YAADEN(37) यादें (३७)

एक दिन मैंने सोचा; देखा जायकि चटनी कैसे बनती है; बाहर रसोई में पत्थर  की कुण्डी थी; मैंने उसमे एक कागज़ रखा और जोर से बट्टा मारा तो पत्थर की कुण्डी दो फाड़ हो गयी ; और मैं चुपके से खिसक गया;वो दोनों टुकड़े शायद अब भी नानुवाला हमारे धर पड़े हैं;  ज्ञान बावरी का लड़का सहीराम मेरा हम उम्र था; उसकी तिपहिया साईकिल हमारे घर सामान  के साथ ऊंटनी से उतरी; मैंने मान लिया , साईकिल मेरी ही है;बड़ी मुश्किल से मुझसे चोरी उसे पहुँचाया गया;
उषा के लिए पेंट और कमीज़ आयी ; मुझे सुन्दर लगी; पिताजी के साथ बनारसीदस अनिल कुमार मल्होत्रा की दुकान पर गया; बाशी (सुभाष शर्मा ) चाचाजी साथ थे; गले तक फौजियों वाली पेंट, सफ़ेद रंग की कमीज़ नाहर सिंह दर्जी ने सिलाई की थी, जिसे पहन कर मैं बहुत खुश रहता था; श्रीराम  के पिता का नाम रतनचंद  वह 37 NP का कोतवाल था, चक के मृत पशुओं लो वह ही उठाते थे; वह पढ़ा-लिखा था; उसका दादा बाबुराम था, यद्यपि छूआछूत काफी थी, रतनचंद और बाबुराम दोनों बाप-बेटों की  दुकान पर पिताजी के पास काफी आमदरफ्त थी; रतनचंद  अक्सर मुझे LAHUR UNIVERSITY और MATRIC  पढाई की बातें किया करता था; श्रीराम की माता धनवंती को मैं मौसी कहता था; बाबुराम बच्चों के नाखून पर चमेली का तेल लगा कर चोरी वगेरा बताता था; एक बार मेरे दायें हाथ के नाखून पर भी उसने प्रयोग किया था ; झाड़ू लगाओ, भिश्ती पानी छिड़के, चोर का पता बताओ, सामान बताओ, जगह बताओ, पर खूब कोशिश करने पर भी मैं कुछ नहीं बता सका; श्रीराम तीसरी तक मुझसे आगे था, चौथी से छटी तक बराबर रहे फिर वह पीछे हो गया; मेरे  देहरादून से वापसआने के बाद वह और करनसिंह राजपूत  विजयनगर सिपाही लग गए थे, बादमें  मैं जब लालगढ़ गिरदावर के पद पर था, एक दिन संयोगवश रायसिंहनगर से बस में पिछले दरवाज़े से चढ़ा;मैंने नानुवाला अड्डे पर उसे आगे -आगे जाते देखा; तो मिलने की इच्छा से दौड़कर पीछे से जाकर उसका कन्धा पकड़ा, उसने मुड कर; देखा और मुझे डांट दिया _"लाला ! बन्दे नू कोई तमीज़ होनी चाहीदी  है " 
मैं बहुत ही रुआंसा हो गया था, सोच रहा था की मैंने पद को भुलाकर दोस्ती को बरकरार रखा; पर उसने पुलसिये जैसा ही किया;
वह चुनावड थाने में था, वहीँ उसकी मौत हो गयी; उसका परिवार अब चुनावड ही रहता है;


जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
Ashok, Tehsildar Hanumamgarh ९४१४०९४९९१
MY HOUSE NANUWALA AT GLOBE 73.450529E; 29.441214 N  

रविवार, 13 मई 2012

YAADEN(36) यादें (३६)

श्रीराम, विश्वनाथ fail होने पर चौथी में हमारे साथ हो गए. रोज़ शाम को पहाड़े बोलने होते थे; पौवा अद्धा पौना सवाया ड्योढ़ा से लेकर आगे तक. मेरी और गुरमेल की एक दुसरे से आगे निकलने की जिद में हम दोनों को 27 तक याद थे

हिंदी, गणित, सामाजिक ज्ञान,  सामान्य विज्ञान,  चित्रकला और उद्योग, शाम को उद्योग के रूप में प्रांगण की साफ-सफाई, पेड़ों को पानी, आदि करना होता था; शनिवार को आधी छुट्टी के बाद बाल-सभा होती थी; तेजासिंह आँखें बंद करके मुंह  ऊपर को करके एक हास्य-गीत सुनाता था - 

आप करदी  दो-  दो   गुत्तां; मैनू  कहिंदी टिंड  मना  !
आप जांदी सिल्मा वेखण;मैनू कहिंदी मुंडा खिढ़ा !! 
ਆਪ ਕਰਦੀ ਦੋ ਦੋ ਗੁੱਤਾਂ; ਮੈਨੂ ਕਹਿੰਦੀ ਟਿੰਡ ਮਨਾ !
ਆਪ ਜਾਂਦੀ ਸਿਲਾਮਾ ਵੈਸ਼ਨ; ਮੈਨੂ ਕਹਿੰਦੀ ਮੁੰਡਾ ਖਡਾ !!
गुरमेल सिंह का गीत बहुत ही भावपूर्ण था; उस समय नासमझ होने पर भी देश-विभाजन की त्रासदी का दर्द दिल में भर जाता था-

गड्डी भर के अमरसरों तोरी                   ਗੱਡੀ ਭਰ ਕੇ ਅਮ੍ਬਰ ਸਾਰੋੰ ਤੋਰੀ

इस के आगे के बोल मुझे याद नहीं ; पर उसका शाब्दिक अर्थ ये है क़ि; -

अमृतसर और लाहौर के बीच rail लाशों से भरी हुई आती-जाती थी* 

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

Ashok, Tehsildar Hanumamgarh ९४१४०९४९९१
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रविवार, 6 मई 2012

YAADEN(35) यादें (३५)

जवाहर लाल नेहरु की मौत के दूसरे दिन 28 .05 .1964 को अलवर से मेरे फूफा कस्तूरी लाल कोहली आए पता चला कि अलवर से रेवाड़ी सादुलपुर हनुमानगढ़ सूरतगढ़ से होकर सभी HOTEL और चाय के ढाबे बंद थे; वापस जाते वक़्त सूरत गाड़ी बदलने के दरम्यान उनका सामान चोरी हो गया था;

मिटटी का तेल 18 LITRE के कनस्तरों में आता था; सूरज छाप, हाथी छाप, चाबी छाप, बुड्ढा छाप 16 बीड़ी का BANDAL 6 नए पैसे, 24 बीड़ी का BANDAL 10 पैसे, सुभाषचंद्र बोस छाप माचिस, LAMP की सिगरेट, मशहूर थी;POST CARD 6 पैसे, अंतर्देशीय 10 पैसे, लिफाफा 15 पैसे व डाक रजिस्ट्री 25 पैसे की थी; 
खाली कनस्तरों से पिताजी ने सरदारा  सिंह तरखान से लगभग 8X8 वर्ग फुट का दरवाजा बनवाया था; मुझे आज भी वैसे ही नज़र आता है, 
सफेद दाढ़ी वाला सरदारा मिस्त्री, खेतुराम बिशम्बर दास गिद्दड़वाह वालों की नसवार सूँघता हुआ;   हमारी दुकान के सामने बैठा हुआ,हाथ में तेसा लेकर, बांसों का बड़ा सारा FRAME बना कर उसके दोनों तरफ कटे हुए कनस्तरों में लोहे की कीलें ठोक रहा है और मै गिलास में उसके लिए चाय लेकर जा रहा हूँ !   

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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