सातवीं जमात के शुरुआत में ही, JULY या AUGUST 1968 में हम लोग ज्वालाजी के दर्शन करने गए। अपने माँ-बाप के साथ ये मेरी पहली तीर्थ यात्रा थी। वही रायसिंहनगर से छोटी LINE पर रात 8 बजे चल कर गंगानगर हनुमानगढ़ होते हुए सुबह 3.30 बजे बठिंडा। फिर बड़ी लाइन पर धुरी, लुधियाना, जालंधर। आगे बस पर होशियार पुर, ऊना और फिर ज्वालाजी। कुल 4 रेलगाड़ियाँ और 3 बसें। आज की तुलना में अजीब सा लगता है।
ज्वालाजी में मैंने गरम पानी वाली गुरु गोरखनाथ जी की डिबिया का सुन रखा था। वह देखने को मैं बड़ा लालायित था। ज्वालाजी दर्शन के बाद हम कांगड़ा गए, मुझे अच्छी तरह से याद है, हम कांगड़ा पुरोहितों के पास रुके थे, खेत में ढाणीनुमा कच्चा कमरा हमें दिया था, खाने बनाने का सामान हमारे पास था।शायद रक्षा-बंधन भी उसी दरम्यान थी।
वहां से हम पठानकोट होते हुए अमृतसर गए, वहां भी रात रूककर सरोवर में स्नान करके स्वर्ण-मंदिर मत्था टेका था। उस दर्शन की याद आज भी मेरे मन में बसी है। 1984 की घटनाओं के बाद पता नहीं क्यों मेरा मन वहां जाने का नहीं करता; हालाँकि कई मौके बने पर मेरा मन वितृष्णा से भर जाता है।
26 जनवरी 2010 अपनी बड़ी बेटी गीतेश के जोर करने पर हम तलवंडी साबो गुरुद्वारा साहिब में गए, अच्छी तरह रात रुके, सुबह यूँ ही टहलते हुए प्रदर्शनी की तरफ चला गया, वहाँ जरनैल सिंह भिंडराँवाले को महिमा मंडित करने वाले चित्र और साहित्य देखकर मन वितृष्णा से भर गया।
सब कुछ हमारे राजनेताओं का कराया धराया है। कब तक भोली जनता को ठगा जाता रहेगा ?
गणेशजी, रिद्धि-सिद्धि, माँ लक्ष्मी, माँ सरस्वती, हम सबको सदबुद्धि और ज्ञान प्रदान करें।
जयहिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
26 जनवरी 2010 अपनी बड़ी बेटी गीतेश के जोर करने पर हम तलवंडी साबो गुरुद्वारा साहिब में गए, अच्छी तरह रात रुके, सुबह यूँ ही टहलते हुए प्रदर्शनी की तरफ चला गया, वहाँ जरनैल सिंह भिंडराँवाले को महिमा मंडित करने वाले चित्र और साहित्य देखकर मन वितृष्णा से भर गया।
सब कुछ हमारे राजनेताओं का कराया धराया है। कब तक भोली जनता को ठगा जाता रहेगा ?
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