रविवार, 25 अगस्त 2013

YAADEN (103) यादें (१०३)

gmm1780218681.jpg1975 के इस उथल-पुथल और गर्माहट-कड़वाहट वाले मिले-जुले माहौल के दरम्यान ही मैं अपनी माताजी के साथ भानियावाला, डोईवाला गया; संगी-साथियों और रिश्तेदारों से मिल-जुल कर वापस आ गया;
ROYAL PUBLIC COLLEGE लुधियाना की मार्फ़त मैंने  PURE MATHEMATICS, APPLIED MATHEMATICS, POLITICAL SCIENCE विषयों में BA PREVIOUS प्राइवेट तौर पर BHOPAL UNIVERSITY से आवेदन किया  मेरा पता मार्फ़त PUNJAB BOOT HOUSE HAMIDIA ROAD BHOPAL था ; दिल्ली पहाड़-गंज में भी उनकी शाखा थी; शायद संचालक का नाम विजय खन्ना था; 
  मैंने नानुवाला घर पर खुद ही तैयारी की थी; PURE-MATHEMATICS तो मैं पहले से पढता आया था; अब APPLIED-MATHEMATICS और खास कर उसमें HYDRO-STATICS , HYDRO-DYNAMICS मुझे काफी आसान लगती थी; कुछ तो गुरजंट सिंह सुबह मेरे पास पढने आता था, करीब 3 या 3.30 बजे वह अपने घर से चाय लाकर मुझे उठाता, लगभग सुबह 5 बजे तक मैं उसे PHYSICS और MATHS  पढाता था; इससे मेरे खुद के दोनों MATHEMATICS अच्छी तरह तैयार हो गये थे; उस वक़्त भारत की राष्ट्रीय राजनीति के हालात ने मुझे POLITICAL SCIENCE पर पूरी पकड़ करवा दी थी; खासकर INDIAN CONSTITUTION और USSR के बारे में !
 
जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
Ashok 9414094991, Tehsildar ; Sri Vijay Nagar 335704 
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रविवार, 18 अगस्त 2013

YAADEN (102) यादें (१०२)

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उसी दरम्यान बड़े मामाजी नानुवाला आये, उनका बड़ा लड़का राजीव (BINTU) भी साथ था; वापसी उनको दोपहर 1 बजे वाली गाड़ी से जाना था; उन्होंने मुझे राजीव के साथ लेकर रायसिंहनगर RAILWAY STATION पर पहुँचने को कहा; मैं पहुँच कर उन्हें ढूंढता रहा; वे नहीं मिले, इतने में गाड़ी आ गयी; मैं राजीव को लेकर PLAT-FORM से बाहर पश्चिम दिशा वाले EXIT के पास खड़ा होकर प्लेटफार्म पर निगाह करता रहा; गाड़ी निकल गयी; मामा जी आकर मुझे नाराज़ हुए; कि PLAT-FORM से बाहर क्यों आया ? मैंने जवाब दिया EMERGENCY लगी है , बिना PLAT-FORM TICKET अन्दर खड़े नहीं हो सकते !
फिर टिकेट वापस करके वे बस पर गए !
पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि आपातकाल में रेलें समय पर आती थीं; दुकानों पर STOCK की उपलब्धता और खुदरा दर प्रतिदिन लिखी मिलती थी; ठीक 10 बजे कर्मचारी कार्यालयों में बैठे मिलते थे; 
उस दौर में सबसे ज्यादा शोषण छोटे किसानों का हुआ, जिन्होंने थोड़ी जोतें होने के कारण या तो अपने टुकड़े अनुसूचित जाति के लोगों को बंटाई पर दिए और काश्त के लिए उन्हें रुपये-पैसे की मदद की; दूसरा वे भी जिन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों की ज़मीन हिस्से ठेके पर ली, और उनको साथ रखकर काश्त करवाने में सहायता की;
इस तरह सामान्य जाति वर्ग के छोटे कृषक बुरी तरह प्रताड़ित हुए ! इससे गावों में चला आ रहा पुश्तैनी सौहार्द काफी डांवाडोल हो गया !  खासकर छोटे तबके के किसानों ने अनुसूचित जाति के मजदूर वर्ग से सम्बन्ध लगभग तोड़ लिए थे !


जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 11 अगस्त 2013

YAADEN (101) यादें (१०१)

EMERGENCY लगने से, बोलने  की आज़ादी ख़त्म हो चुकी थी; मुख्य विपक्ष जनसंघ और दूसरे छोटे साम्यवादी, समाजवादी दलों के अधिकांश नेता अटल बिहारी वाजपई, लालकृष्ण अडवाणी, अशोक मेहता, समर गुहा, JP कृपलानी, JP नारायण, ज्योतिर्मय बसु, मधु दंडवते, मधु लिमये, नीलम संजीव रेड्डी, मोरारजी देसाई, GEORGE FERNANDEZ राजनारायण, आदि जेलों में बंद कर दिए गये;

जाती तौर पर मेरे साथ एक और वाकया पेश आया, उन दिनों PRINT FORM को भर कर या सादे कागज़ पर TYPE करवा कर या फिर हाथ से पूरी नक़ल करके TRUE-COPY करवाई जाती थी; मैं अक्सर अपने दस्तावेजों के लिए स्कूल में, BDO के पास या किसी दुसरे सरकारी कार्यालयों में चला जाता था; एक दिन दस्तावेजों की प्रतियाँ सत्यापित करवाने रायसिंहनगर तहसील में चला गया, गजेन्द्र हल्दिया SDM और सुभाष चन्द्र जी तहसीलदार थे; मैं सीधा तहसीलदार जी के पास चला गया, उन्होंने कहा बाबु से COMPARE करवा लो; मैं पश्चिम दिशा की तरफ कमरे में आया तो बाबूजी कुर्सी पर बैठे आराम से बीड़ी पी रहे थे; मैं पास जाकर खड़ा हो गया, और COMPARE करने को कहा, काफी देर खड़े रहने पर भी उसने मेरे काम का ध्यान नहीं दिया,
मैंने फिर से कहा ;
 उसने जवाब दिया  - TIME  नहीं है;
 मैं भड़क गया और कहा- बीड़ी पीने का TIME है, COMPARE करने का नहीं ?
वह मुझे बाजु से पकड़ कर तहसीलदार जी के पास ले गया, और शिकायत कर दी;
मुझे एक-एक शब्द याद है; तहसीलदार जी ने कहा - ज्यादा ज्ञानी हो ?
मैंने फिर से अपनी बात दोहरा दी;
तहसीलदार जी बोले- ले जाओ, थाने में बंद कर दो !
उस समय जमादार आकर मुझे अपने साथ बाहर ले आया और बोला; तुम जाओ !




जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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रविवार, 4 अगस्त 2013

YAADEN (100) यादें (१००)

आपात काल घोषित होने के साथ ही संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकार निलंबित हो गये;  पिताजी मेरी हरकतों और रंग-ढंग से थोड़े आशंकित रहते थे; उस समय हमारे गाँव में श्री कल्याण सिंह राजावत (निवासी 3STB) ग्राम-पंचायत के सचिव थे, मैं उनसे ज्यादा परिचित तो नहीं था; किन्तु वे मुझे अच्छा लड़का समझते थे; उन्होंने मुझे समझाने की कोशिश की, कि संजय गाँधी की युवा कांग्रेस का बोर्ड बनवा कर टांग लो; अपनी दीवारों पर SLOGAN लिख लो; गाँव ,में तुम्हारी पूछ होने लग जावेगी; मैंने उन्हें साफ बता दिया कि यह मेरी विचार-धारा से बाहर है;
gmm1780218681.jpgतब उन्होंने गांधीजी की मौत के बाद खुद का वाकया बताया कि उस दिन किसी ने सामान्य बातचीत में ही बोल दिया कि कल्याण सिंह नत्थुराम गोडसे के बारे में बात कर रहा है; तो पुलिस मेरे पीछे पड़ गयी और मैं कई दिन छुपा रहा;
  एक दिन तो गज़ब हो गया, बाकी घरों के साथ-साथ, हमारी दीवार पर भी नारा लिखने वाले ने लिख दिया; मैंने देखा, पहले तो गुस्से में उसे बुरा-भला कहा, फिर उसके सामने ही उस लिखावट पर कली पोत दी; इस घटना के बाद पिताजी मेरे प्रति ज्यादा ही आशंकित हो गये थे;


जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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