रविवार, 29 अप्रैल 2012

YAADEN(34) यादें (३४)

सामान्यतः मै शरारती नहीं था किन्तु जिज्ञासु अवश्य था. पिताजी के साथ दुकान के छोटे मोटे कम करता था. लालटेन व चिमनी रोज़ साफ करना मेरा कम था. दुकान पर लालटेन टांगने के लिए छत से नीचे आधी उंचाई तक सूतली की रस्सी बाँधी रहती थी, जिसके नीचे लोहे का  कुंडा (S)लगा था. एक दिन पिताजी मुझे बिठा कर काम गए. मैं झूलने का विचार किया. थड़ी पर चढ़ कर कुंडा दायें गाल में डाला; और झूल गया. लोहे का कुंडा मेरे गाल के आर-पर हो गया. पता नहीं क्यों ? न तो मुझे दर्द हुआ, न ही डांट पड़ी.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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