रविवार, 6 मई 2012

YAADEN(35) यादें (३५)

जवाहर लाल नेहरु की मौत के दूसरे दिन 28 .05 .1964 को अलवर से मेरे फूफा कस्तूरी लाल कोहली आए पता चला कि अलवर से रेवाड़ी सादुलपुर हनुमानगढ़ सूरतगढ़ से होकर सभी HOTEL और चाय के ढाबे बंद थे; वापस जाते वक़्त सूरत गाड़ी बदलने के दरम्यान उनका सामान चोरी हो गया था;

मिटटी का तेल 18 LITRE के कनस्तरों में आता था; सूरज छाप, हाथी छाप, चाबी छाप, बुड्ढा छाप 16 बीड़ी का BANDAL 6 नए पैसे, 24 बीड़ी का BANDAL 10 पैसे, सुभाषचंद्र बोस छाप माचिस, LAMP की सिगरेट, मशहूर थी;POST CARD 6 पैसे, अंतर्देशीय 10 पैसे, लिफाफा 15 पैसे व डाक रजिस्ट्री 25 पैसे की थी; 
खाली कनस्तरों से पिताजी ने सरदारा  सिंह तरखान से लगभग 8X8 वर्ग फुट का दरवाजा बनवाया था; मुझे आज भी वैसे ही नज़र आता है, 
सफेद दाढ़ी वाला सरदारा मिस्त्री, खेतुराम बिशम्बर दास गिद्दड़वाह वालों की नसवार सूँघता हुआ;   हमारी दुकान के सामने बैठा हुआ,हाथ में तेसा लेकर, बांसों का बड़ा सारा FRAME बना कर उसके दोनों तरफ कटे हुए कनस्तरों में लोहे की कीलें ठोक रहा है और मै गिलास में उसके लिए चाय लेकर जा रहा हूँ !   

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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