31दिसंबर 1964 को हम सब नए स्कूल के बड़े वले कमरे में डाली गई मिटटी की कुटी कर रहे थे उस दिन से आगे छुट्टियाँ होनी थीं; कृष्ण मंडा और नत्थू सुथार एक एक ईंट लेकर कुटी कर रहे थे, मैं तीसरी में था और वे दोनों पांचवी में ; मुझे अच्छी तरह याद है कमरे का उत्तर-पश्चिम कोना था, मैं हाथों से अर्ध गीली मिटटी थपक रहा था; शायद हो सकता है, कि उन्होंने मुझे टोका हो या न टोका हो ! मेरे दायें हाथ के थपके के ऊपर कृष्ण की ईंट पड़ गई; मेरी कनिष्ठ का नाख़ून उतर गया और खून निकलने लगा; वे दोनों घबरा गए थे; मै न तो रोया न ही उनसे कोई शिकायत की; शाम को वे दोनों SKIN OINMENT की TUBE लकर घर आये और मुझे देकर गए;; मेरे माता-पिता ने भी इसे सामान्य घटना के रूप में लियाथा* वैसे भी कृष्ण के पिता लूणा जी मंडा सभ्रांत व शांत प्रकृति के थे हालाँकि उसके दादा हमीरा जी और चाचा शंकर की छवि उतनी अच्छी नहीं थी; नत्थू के पिता हनुमान जी सुथार की मेरे पिताजी के साथ अच्छी उठ-बैठ थी* दायें हाथ की कनिष्ठा का नाखून आज भी उस घटना का गवाह है*
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
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