रविवार, 22 जुलाई 2012

YAADEN(46) यादें (४६)

जून 1966 में  मामा जी भानियावाला से आये, और मुझे अपने साथ ले गए; देहरादून-ऋषिकेश ROAD पर देहरादून से 24 किलोमीटर, ऋषिकेश से 20 किलोमीटर; मुख्य सड़क से दक्षिण में उत्तर को खुलता हुआ मकान था; उसके मालिक आजाद मामाजी थे; पूर्व दिशा में चौधरी कलमसिंह जी का मकान था; उनका बड़ा बेटा पदमसिंह, छोटे मामाजी का दोस्त था; मझला सतपाल सिंह, गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार में पढ़ता था; और छोटा शेरसिंह मेरा सहपाठी था; BESIC PRIMARY SCHOOL भानियावाला में उस वक़्त रमेशचँद जी रतूड़ी प्रधानाध्यापक 5 वीं को, और पूरणसिंह जी कक्षा 4 को पढ़ाते थे; अन्य गुरुजन का मुझे याद नहीं है;
उस वक़्त उत्तर प्रदेश में 52 जिले थे; राजस्थान में हम तख्ती पर गाचनी से सफ़ेद पोच कर काली स्याही से लिखते थे; वहां जाने पर तवे की कालिख से पोच कर; धूप में सुखाकर, खाली काँच की बोतल से घोटते थे; बाकायदा आपस में जिदाई होती थी कि, किसकी तख्ती ज्यादा चमकती है ?  चूने में भिगो कर सफ़ेद लिखते थे; एक और नई चीज ये थी, कि वहां उलटी गिनती 100 से 1 तक बोलनी पड़ती थी; गुरु जी ने एक दिन उलटी गिनती सुनाने के लिए मुझे उठाया ; तो मैंने हाँ तो भर ही ली ; फिर धीरे-धीरे हिम्मत करके करके पूरी तो भी कर ही  दी   
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
Ashok, Tehsildar Hanumamgarh ९४१४०९४९९१
MY HOUSE NANUWALA AT GLOBE 73.450529E; 29.441214 N  

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