रविवार, 15 जुलाई 2012

YAADEN (45) यादें (४५)

मेरे 4थी पास करने से ठीक पहले एक ज़बरदस्त और अप्रत्याशित घटना हुई; जीवन सिंह जी का लड़का, महेंद्र सिंह जो मुझ से एक कक्षा नीचे था; एक रंगीन PLASTIC कांच का फुटा SCALE लेकर SCHOOL में आया; उसके उस फुटे को सबने बड़े चाव से देखा परखा और सराहा;
वह फुट जब मेरे हाथ में आया लगभग उसी समय HALL में ततैया आ गए ; सब बच्चे अपने-अपने तरीक़े से उन्हें मारकर भगाने लगे; मैं भी, इस काम में शामिल हो गया; और मेरे हाथ से वह सुन्दर फुटा टूट गया 
बात का बतंगड़ बन गया; दुश्मनी के हालात तो पहले से ही चले आ रहे थे;  उस रात आमने-सामने लाठी-भाटा जंग के पूरे आसार हो गए थे;
दूसरे दिन पिताजी रायसिंहनगर से 4 नए रंग-बिरंगे फुटे लाए ; 2 मैंने महेंदर को दिए और दो अपने लिए रखे;
यह घटना मेरे भानियावाला जाने का मुख्य कारण  थी;

गुरमेल ने एक चुटीली कहावत बनाई -

हाय, नी ! मुड़ की होया ? ਹਾਏ, ਨੀਂ ! ਮੁੜ ਕੀ ਹੋਇਯਾ ?
फुट्टा मर गिया !             ਫੁੱਟਾ ਮਰ ਗਿਆ !               

जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ  
Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991

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