रविवार, 8 जुलाई 2012

YAADEN (44) यादें (४४)

कुछ तो आपसी रंजिश कुछ रोजगार की वज़ह से मामा केदारनाथ जी की मौत के बाद मेरे ननिहाल का परिवार अपनी ज़मीं ठेके पर देकर पूरी तरह भानियावाला चले गए. उनके कुछ समय बाद,शायद मई 66 में दादा दुर्गादास जी व गुरदित्तामल भी चले गए. इनके मकान की देखभाल का जिम्मा पिताजी पर आ गया था. 
दुर्गादास जी ने JOLLY GRANT में दुकान की और गुरदित्तामल जी ने रानीपोखरी में होटल खोला; बाद में वे दोनों परिवार जम्मू चले गए; दुर्गादास मंगतराम जी बक्शीनगर रौलकी अपने रिश्तेदारों के पास और गुरदित्तामल जी जम्मू के पास ही राजबाग चले गए.
कुछ साल बाद गुरदित्तामल जी दिल्ली अपने चचेरे भाई बृजलाल सेठी के पास सुभाष नगर चले गए;वहाँ से लगभग 1976में रायसिंहनगर वापस आकर उन्होंने पंजाब नेशनल बैंक के सामने होटल खोला; कुछ दिन मैंने भी उनके साथ काम किया था; फिर भाग-दौड़ करके अन्त्योदय परिवार के तहत अमरपुरा बारानी  में 9 बीघा अराजी काश्त के लिए ज़मीं ALOT हो गई  थी;   मुफलिसी के हालात में ही उनका इन्तेकाल हो गया. कुछ साल बाद उनकी पत्नी और दत्तक  पुत्र जगदीश, जो 24 PS में अपने माँ-बाप के पास वापस चला गया था; उसकी भी मौत हो गई. 
मंगत राम जी के साथ मेरे पिताजी की चचेरी बहिन सत्या  देवी का विवाह 1971 में हुआ. उनका लड़का विनोद कुमार है. 
 जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
  Ashok, Tehsildar Hanumangarh ;
My Location at Globe 74.2690 E; 29.6095N

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