मुझे धुंदली याद है गाँव के दुसरे लोगों के साथ मेरे चाचा बालकृष्ण जी व् मामा वेद प्रकाश जी भी लाणा (ऊँची किस्म की जलाऊ लकड़ी) लेने जाते थे. शाम को जाकर आधी रात तक उंठो पर लादकर लाते
थे. जरुरत लायक घर रखकर बाकि रायसिंहनगर बेचते थे.राजस्थान नाहर (NOW IGNP) की खुदाई का काम शुरू होने पर मेरे छोटे मामा सुभाषचन्द्र जी ने वहाँ काम किया था. उनकी CYCLE के सामने मिटटी के तेल की चिमनी लगी थी. हमारे घर संदूक में चाचा बालकृष्ण जी की पेंट कमीज़ थी. मेरी संभल में उन्होंने उसे कभी नहीं पहना. सफ़ेद-काली बिंदी वाली वो पेंट बाद में कटवा कर मैंने पहनी थी.
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
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