रविवार, 5 फ़रवरी 2012

YAADEN (22) यादें(२२)

पिताजी के साथ अक्सर महीने में एक बार तो बाल कटवाने या कोई कपडा बूट-जुराब वगेरा लाने को मेरा रायसिंहनगर जाना हो ही जाता था* उस ज़माने में तहसील से  
KUMAR BROTHERS PETROL PUMP तक सिर्फ पाँच-चार खाने के ढाबेनुमा होटल  थे. बाकि सब सुनसान था.  दीनानाथ कोहली, मेरे पिताजी के रिश्ते में मामा गुरदित्तामल  और  एक कश्मीरी ब्राह्मण सिख; ये तीन  खास ढाबे ठहरने व VEG/NONVEG खाने के थे.सब्जी बाज़ार  भी ढाबे थे.सब्जी मंडी चौराहे से उत्तर को पुलिस थाने की तरफ जानेवाली हरी हलवाई की मशहूर दुकान दक्षिण पश्चिम को खुलती थी ; (वर्तमान जगन्नाथ चिरंजीलाल कपडे वाले के सामनेमुझे पचास ग्राम बर्फी और आध पाव दही की लस्सी या दूध मिलना लाजिमी होता था. बड़े सारे तख़्तपोश पर भारी भरकम सरदार हरीराम का दोनों हाथो से मधानी चलाते, लोटे में दही के माथे जाने, लोहे के उलटे सुए से बर्फ तोड़ने के चटकारे, लोटे से बहार निकलते दही के छींटों की खट्टी-मीठी महक, और अंदर बैठे शहरी  व देहातियों की उर्दू, पंजाबी, राजस्थानी, डोगरी,कश्मीरी, सिन्धी की खिचड़ी बोली. गंगा-जमुनी तहज़ीब; वहां का सारा  मंज़र आज भी मेरे दिलो-दिमाग में जज़्ब है*

जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

http://www.apnykhunja.blogspot.com/  //www.apnybaat.blogspot.com/;  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें