रविवार, 1 जनवरी 2012

YAADEN (16) यादें (१६)

होलाष्टक से पहले ही चंग की थाप सुनने लगती थी शाम से देर रात
तक बावरियो के मोहल्ले में धमाल मचता वहां देहाती किस्म के स्वांग लोगों के बारे में बनाये जाते थे एक दो बार मेरे पिताजी और चाचाजी के बारे में भी स्वांग बने थे पर इनका बुरा न मानकर हंसी ठट्ठे में लेते थे होली दाह की सिर्फ बातें सुनी थी झगडे के वहम से मुझे वहां जाने की मनाही थी ये इत्तेफाक है; की मैं आज तक नानुवाला की होली-दाह में शिरकत नहीं हुआ.
होली के दिन सारे गाँव में चंग काफिला सारे घरों में घूमता गता-बजाता 
था बाद में सब एक दूसरे से मिलने और राम-राम करने एक दूसरे के घरों में जाते थे. 
अंग्रेजी नव-वर्ष २०१२ की शुभकामनाएं !Photo: Pichkari ki Dhar,
Gulal ki bauchhar,
Apno ka pyar,
Yahi hai yaaron holi ka tyohar.
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
http://www.apnykhunja.blogspot.com/

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