रविवार, 6 नवंबर 2011

YAADEN (8) यादें (८)

मेरी छोटी बहन सरोज के जन्म 1961से पहले दरम्याने मौसम की एक बोझिलऔर धुंधली शाम,घर व दुकान के बाहरी दरवाज़े बंद करके दुकान में मेरे वालिद खिड़की की तरफ पश्चिम को मुंह करके बैठे थे* माँ खिड़की के बाहर पूर्व 
को मुंह करके बैठी थी* माँ ने पड़ोस की तरफ हाथ करके कुछ बोला तो,पिताजी ने धीरे कुछ कहकर चुप करा दिया* मासूम व बेअक्ल  होने पर भी हालात की संजीदगी और अनहोनी मेरे ज़हन में आ गई थी * हमारे घरों में फूट व षड्यंत्रों की शायद वो पहली शब् थी; वो मंज़र अब तक मेरी आँखों में सरोबार है
 कलह का मरकज़ मेरे मझले मामा केदार नाथ थे* मगरचे उसकी ज़द में मेरे पिताजी आ गए थे पंडित रघुनाथदास,ठाकुर ज्ञानचंद व बड़े मामाजी के खास दोस्त दीनानाथ आनंद के ख्यालात से पिताजी की नाइत्तेफाकी थी 
अगरचे पंडित पुरुषोत्तम दास चेतराम मनोहरलाल ठाकुर संतराम बलवंतसिंह नारायणसिंह बलदेवसिंह चुनीलाल और खत्रियो में  धनीराम  भी मेरे वाल्देन से मुत्फिक थे पर ज़ाहिर तौर पर किसी की मुखालफत नहीं कर सके थे नतीजतन खत्रियो के हमारे दोनों घर मुकम्मल तौर पर अलग थलग हो गए थे * ज़ाहिर तौर पर दो धड़े बन गए पंडितो के दोनों बड़े घरो का एक धड़ाऔर खत्रियो के दो घरो का दूसरा धड़ा तकरीबन सारे राजपूत तो पंडितो के हक में थे ही; बाक़ी खत्री व हमारे जाती रिश्तेदार भी उसी तरफ थे* पिताजी की चाची रामप्यारी तो हमारे खिलाफत में थी ही, वालिद साहेब के मामा दुर्गादासजी भी उनके साथ थे* माँ पिताजीऔर नानी जी की मुखालफत को नज़र अंदाज़ करके; इन सबने पिताजी की चाची की चादरपोशी मेरे मझले मामा से करवाई* ये वाकया अपने निशानात छोड़कर मुख़्तसर ही ख़त्म हो गया* मेरे स्कूल दाखिले के वक़्त तक ये किस्सा तकरीबन ज़मिदोज़ हो गया था* मगरचे इसके नतीज़तन ज़ख्म बड़े गहरे हुए; मेरे वालदेंन और नानी को मरते दम तक इसका सदमा रहा*  
श्रीगुरु नानक देव जी ने फ़रमाया : -
 सोचे सोच न होइए!
 ਸੋਚੇ  ਸੋਚ  ਨਾ  ਹੋਈਏ !
 जे सोचे लख  वार !!
 ਜੇ  ਸੋਚੇ  ਲਖ   ਵਾਰ !!
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
      

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