रविवार, 13 नवंबर 2011

YAADEN(9) यादें(९)

आपसी रंजिश केचलते कश्मीरियों में गुटबाजी हो गई थी. मुंह में राम बगल में छुरी थी. पंडित रघुनाथदास मेरे पिताजी के विरोधी थे. हमारे
निजी रिश्तेदार अन्दर से उनके साथ थे. हमारी दुकान की सरकनों वाली छत के नीचे पिताजी ने बोरियों की पल्ली बाँधी थी ताकि चिड़िया सरकने ख़राब न करें. पिताजी की चचेरी बहन कमलेश ने एक शाम चुपके से आकर अपने भाई भाभी यानी कि मेरे वाल्देन को बताया कि कल सुबह पुलिस आकर इस बात की तलाशी लेगी आप अफीम बेचते हो. मेरे पिताजी चाचा बालकृष्ण व तीनो मामा और मेरी माँ ने घर दुकान तूड़ी के कोठों व पशुओं के बाड़े में में अफीम तलाश करना शुरू किया*
 पर देर रात तक भी अफीम नहीं मिली. ज्यादा रात बीतने पर बड़े मामाजी ने पिताजी को कहा कि लड़की ने आपको वहम में डाल  दिया है. इन्होने तलाशी बंद कर दी. सुबह पुलिस ने तलाशी ली तो कुछ नहीं मिला तब थानेदार ने छत वाली पल्ली उखडवाई तो उसमे से अफीम गिरी, छत में सुराख था. मेरे पिताजी को 15 रोज़ की जेल हुई. ये मेरी
होश से पहले  का वाकया है. माँ ने बताया जिस रोज़ सजा का ऐलान हुआ में पिताजी के कंधे से लिपटा था. पुलिस जब उनको लेजा रही थी तो में उनके कंधे से उतर नहीं रहा था.

अफीम वाकया मेंपिताजी को सजा होने के तकरीबन ही लगातार हमारी चार भैंसे मर गई माली  तौर पर भी काफी सदमा हुआ था पिताजी ने बड़े मामाजी को ज़ाहिर तौर पर कसूरवार तो नहीं ठहराया पर कभी कभार घरेलु गुफ्तगू में ये ज़िक्र करते थे की वेद न बोलता तो सारी पल्ली उखड जाती*
छत के सरकनों में सुराख़ तकरीबन1970 में पुरानी छत व दीवारें हटाकर नई बनाने तक कायम रहा मै अमूमन उस सुराख़ को गौर से देखा करता था
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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