रविवार, 9 अक्तूबर 2011

YAADEN (4)यादें (४)

 जम्मू कश्मीर सरकार ने प्रत्येक परिवार को ३५००/- रूपए पुनर्वास सहायता के रूप में देने की घोषणा की थी.  हमारे लोग  इसे क्लेम मानते रहे. इस रक़म को लेने के लिए भी  बहुत जोर आया. जल्लंधर में इसका केंद्रीय  भुगतान कार्यालय था. प्रत्येक परिवार के अलग कागज़ कभी जालंधर से और कभी जम्मू से अंग्रेजी में लिखा पढ़ी करनी पड़ती थी; जो काफी मुश्किल  काम था.   लगभग १००० या १२०० रुपये १९५२ में क़र्ज़ के रूप में दिए थे जो बाद में १९६४-६५ जब क्लेम मंज़ूर होने शुरू हुए तो  ब्याज समेत लगभग १५००-१८०० बन गए थे. उस समय भी एक मुश्त भुगतान नहीं दिया २०००/ में से क़र्ज़ व् ब्याज काटकर नकद दिए. बाकी  १५००/- रुपये के पांच साला बांड  दिए. 
कई बार ये अफवाहे आई कि क्लेम राशी ३५००/- से बढ़ा कर ३५०००/- की जा रही है.
१९४८-५२ के कश्मीरी हिन्दू शर्णार्थियो का सबसे बड़े दुर्भाग्य ये है कि कश्मीर का वो भू भाग जहाँ हमारे पूर्वज रहते थे; भारतीय संविधान के मुताबिक आज भी भारत में माना जाता है. और  संविधान लागु होने से आजतक उस क्षेत्र के लोक सभा सदस्यों के पद रिक्त रहते आये हैं. इसीलिए भारत सरकार ने न तो हमें शरणार्थी माना,  न ही पीछे छूटी सम्पतियो का कोई मुआवजा दिया. भारत सरकार कहती है, आप १९४८ से पहले भी भारत में थे; आज भी भारत में हो, इसलिए पाकिस्तान के विस्थापितों से तुलना मत करो. 
 व्यावहारिक धरातल का कटु सत्य है कि पाकिस्तान ने उसे अलग राज्य का दर्ज़ा देकर मुज़फराबाद को उसकी राजधानी बना रखा है. यह सब जवाहर लाल नेहरु की गलत नीतियों और महाराजा हरीसिंह तथा गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ मनमुटाव का परिणाम है.

जय हिंद جیہینڈ
जय हिंद جیہینڈ

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