मेरे दादाजी किसी चक 36NP में पुराने भट्ठे की खाली को अलाट करवाना चाहते थे. इसी कारण वे अक्सर 6 मील दूर रायसिंह नगर कचहरी में पैदल आते जाते रहते थे. उस ज़माने में काली पीली भयंकर आंधियां चलती थी, टीलों भरा रास्ता था और पानी साथ लेकर जाना पड़ता था. ये हालात लगभग 1970 तक ऐसे ही रहे, हालाँकि बाद में १९६५ के आस पास 12TK व् सुनारों वाली ढाणी 28NP में जनसहयोग से डिग्गियां बन गई थीं. 1970 में रायसिंह नगर से श्रीबिजयनगर पक्की सड़क बनी, उस समय मैं 25NP में आठवीं में पढ़ता था.
1954 की गर्मियों में मेरे दादाजी रायसिंहनगर कचहरी से वापस गाँव आ रहे थे. ठाकरी के पास ज़बरदस्त आंधी और प्यास से बेहाल होकर, एक खेजड़ी के नीचे बेहोश हो गए; समाचार मिलने पर मेरे पिता चाचा व् दूसरे लोग पानी व् चारपाई लेकर गए, और उस दिन उनका देहांत हो गया. उसके बाद मेरे माता पिता की शादी हुई. मेरे जन्म के समय मेरे छोटे दादा नन्दलाल जी बीमार थे, वे किसी शुभ मुहूर्त में मुझे देखना चाहते थे. किन्तु इसी दरम्यान वे अपने पौत्र का मुंह देखे बिना ही विदा हो गए. मेरी माता अक्सर इस घटना क्रम का ज़िक्र करती रहती थीं.
ਜੈਹਿੰਦ جیہینڈ जय हिंद
SHARMA MAHAVEER PRASAD mvpdadhich@gmail.com
जवाब देंहटाएंtoAshok Kumar
dateTue, Oct 4, 2011 at 2:52 PM
subjectRe: [APNY-BAAT] YAADEN (3) यादें (३)
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आपके जीवन वृत्त की कहानी बड़ी ही गंभीर है! कृपया आगे जारी रखें. धन्यवाद! महावीर प्रसाद शर्मा