मेरी दादी मोहतरमा बस्सी देवी, सख्त मिज़ाज, मज़हब-परस्त, मगर नेक दिल घरेलु औरत थीं* हमारे कारोबार व घोड़ी-ताँगा हांकने वाले मुस्लमान कारिंदे थे* सुबह सवेरे दरिया से नहा कर आते वक़्त; खुदा न खास्ता सामने से उन पर किसी मुस्लमान की परछाई पड़ जाती; तो वापस दरिया पर जाकर आती* जंगल से आने वाली जलाऊ लकडिया धोकर इस्तेमाल करती थी* घर में आने वाले राशन में से हल्दी नमक चावल लकड़ी वगैरा में से कुछ अलग से बचाकर रख लेती थी* जो तंगहाली या बरसात में इस्तेमाल करती थीं* बिना उनकी इजाजत रसोई में दादाजी पिताजी या चाचाजी भी नहीं जा सकते थे * 1948 की भागम भाग से पहले ही उनका इंतकाल हो चुका था*
मेरी नानी कौशल्या देवी, दादा दुर्गादास जी , गुरादित्तामल जी, बृजलाल जी, व मेरे छोटे दादा नन्दलाल जी की सास सीतादेवी और जम्मू रहने वाले सुंदरदास जी, कांगड़ा रहने वाले भगतराम व बंसीलाल ये सब मेरी दादी के ममेरे/मौसेरे/फुफेरे भाई बहन लगते थे, इन साहेबान की ज़बानों से ही मुझे अपनी दादी के किस्सों का इल्म हुआ* इनमे से अब कोई भी मौजूद नहीं है*
अब जब कभी कोई बुजुर्गवार गुस्सा में कुछ कहता है, तो यूँ लगता है; जैसे उनमे से ही कोई मुझे ज़िन्दगी का फलसफा समझा रहा हो*
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
अब जब कभी कोई बुजुर्गवार गुस्सा में कुछ कहता है, तो यूँ लगता है; जैसे उनमे से ही कोई मुझे ज़िन्दगी का फलसफा समझा रहा हो*
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ