रविवार, 30 जून 2013

YAADEN (95) यादें (९५)

जम्मू गंगयाल में रहकर मैंने बेकरी का कम अच्छी तरह सीखा; दादा दुर्गादास जी, दादी प्रेम देवी, चाचा मंगत राम, बुआ सत्यादेवी, उनका कारीगर रमेश उम्र में मुझसे छोटा था; मैं उसे छोटे भाई की तरह ही व्यवहार करता था; दादा जी बहुत CIGARETTE पीते थे, मैं उस ज़माने से देखता आया था , नानुवाला में LAMP फिर वर-चक्र,
पंजाबी में एक चुटकुला भी चलता था : -
 पाणी पीओ, पम्प दा !    ਪਾਣੀ ਪਿਓ ਪੰਪ ਦਾ !
सिगरट पीओ लम्प दा !! ਸਿਗਰੇਟ ਪਿਓ ਲੰਪ ਦਾ !!
एक शाम दादा जी को कुछ घबराहट हुई; हम सब घर पर ही थे;
जो कुछ भी उपचार करना था किया; जब वे कुछ स्वस्थ हुए , तो मुँह की गाली के साथ सिगरेट की डब्बी फेंक दी; एह छड्डी !!! ਇਹ ਛੱਡੀ !!!
उस दिन के बाद उन्होंने  कभी सिगरेट नहीं पी !
मैं उनकी उस दिन की इच्छा-शक्ति का कायल हो गया था !
1999 में जब मैं हिन्दुमलकोट था, कारगिल की लड़ाई के कुछ दिन बाद उनका जम्मू में ही देहांत हुआ !



जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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