रविवार, 3 जून 2012

YAADEN 39 यादें (३९)

1962 की लड़ाई तो मुझे YAAD  नहीं जवाहरलाल नेहरु की मौत, गुलजारीलाल नंदा कार्यवाहक प्रधान मंत्री, लालबहादुर शास्त्री प्रधान-मंत्री, सरदार स्वर्णसिंह रक्षा मंत्री, सरदार अर्जुनसिंह थल सेनाध्यक्ष और 1965 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई ज़ेहन में बरक़रार है 
लड़ाई के आसार होने पर हम ऊना चले गए; उस समय हरयाणा और हिमाचल प्रदेश नहीं थे; सारा पूर्वी पंजाब था; और ऊना होशियार जिले में था। वहां पर ही मैंने पंजाबी लिखना-पढ़ना सीखा था; नंगल और देहरा की बसें गुज़रा करती थीं; मुझे लगता था;शायद ये देहरादून ही होगा; कुछ दिन रूककर माताजी और मेरी दोनों छोटी बहनों सरोज और सुशीला को वहां छोड़कर में पिताजी के साथ वापस आ गया।
वापसी के वक़्त हम रात को होशियारपुर  में उसी हवेली में ठहरे; जो मेरे परदादा लाला रूपचंद बांसल (रूपाशाह) और उनके पिता लाला गोपालदास  बेचकर कश्मीर चले गए थे। उस हवेली की शान और अनुभूति आज भी मेरे दिल-दिमाग में है।
सर्दियों के दिन थे; लड़ाई लगी हुई थी, एक रात जिस समय मैं अकेला रजाई में दुबका हुआ था; बाहर चाचा मंगत रामजी ने टीन के दरवाजे पर जोर-जोर से लातें मारनी शुरू की; मैं बहुत डर  गया था; बाद में उन्होंने खुद हे आकर मुझे दिलासा दिया;
उस वक़्त गंदुम 50 पैसे और चना 40 पैसे किलो था चीनी का मामुल भाव R 1/ किलो था ज़बरदस्त ब्लैक सेर 10/ तक बिकी रायसिंहनगर एक दुकान में आग लगाने से कई बोरियां चीनी स्वाहा हो गई; उस दुकानदार पर BLACK से चीनी बेचने का मुक़दमा काफी चर्चित रहा था; 
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ

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