रविवार, 27 अप्रैल 2014

YAADEN (138) यादें (१३८)

१९७७ में जब मैं और ओम सतजंडा में सुखदेव सिंह जी के पास training में थे, तो बल्लेवाला (38NP) निवासी ओमप्रकाश बिश्नोई सुथार, और उसका छोटा भाई, अक्सर आते रहते थे; वे दोनों चिनाई के कारीगर थे; बाद में पड़ौसी गाँवो के निवासी होने से वह यदा-कदा हमारे घर भी आने लगा था; उसने 25PS में पक्का खाला बनाने का ठेका लिया, मैंने उसकी सिफारिश करके पिताजी से उसे कुछ रकम उधार दिलवा दी; मैं जब कभी रायसिंह नगर जाता तो, उसका काम देखने भी चला जाता था;  दादा गुरदीत्तमल जी के लड़के जगदीश को भी हमने उसके साथ कर दिया था;
उसी जगह काम करने वाले बाहर से आये एक मिस्त्री ने अपना सोना बेचने कि पेशकश की; मैंने सुनार से जाँच करवाकर वो सोना खरीद लिया; कुछ पैसे ताराचंद मुनीलाल वाले मोहन लाल जी से और कुछ पैसे बजरंगलाल सतयनारायण वाले सत्यनारायण से लेकर और कुछ पैसे मैंने अपने पास से कुल   R ५५००/- उसे दे दिये, बाकी सात-आठ सौ रूपए कुछ दिन बाद देने का वायदा किया; हालाँकि जगदीश ने मुझे आगाह भी किया कि, जो सोना हमने TEST करवाया था, उसने उसे बदल कर दे दिया  है; पर मैंने इसे जगदीश का वहम माना; मैं ताराचंद मानमल जौड़ा कि दुकान पर गया; मानमल जी ने बताया कि सोना नकली है;
 ये वर्ष १९७८ या १९७९ दीवाली का दिन था, जब वणिक-पुत्र इस दिन कुछ कमाकर घर में लाते है; मैं ५५००/- यानि कि मेरी एक वर्ष से ज्यादा की कमाई लुटाकर घर आया था;
मुझे अच्छी तरह से याद है, वह कथित सोना, कपडे के थैले में, उसके ऊपर सेव, साइकिल की टोकरी में डालकर मैं घर लाया था;
जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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