रविवार, 31 मार्च 2013

YAADEN (82) यादें(८२)

XII में बड़े दिनों की छुट्टियाँ होने पर;  31 दिसंबर 1973 को मैं भानियावाला से देहरादून होकर सहारनपुर तक बस पर पहुंचा।  RAILWAY के LOCO RUNNING -STAFF की हड़ताल चल रही थी, सुबह की अख़बार में खबर आ गई थी कि, आज हड़ताल टूट जावेगी,  सहारनपुर से शाम छः बजे चलने वाली Shuttle जाने के आसार न होने के कारण, वाया यमुनानगर, अम्बाला तक बस पर आना पड़ा, अम्बाला छावनी  RAILWAY-STATION पर आकर पता चला हड़ताल टूट गई है, वहीँ पर मुझे दो साथी मिल गए, एक बापू बाज़ार जयपुर के थे, जिनको नंगल डैम जाना था, उनका नाम मुझे याद नहीं, दूसरे कुरुक्षेत्र में ENGINEERING पढने वाले श्रीविजयनगर के कैलाश मिड्ढा थे;  हम तीन राजस्थानी अनायास ही मिल गए, मैं उन दोनों से छोटा था, 

अम्बाला से बठिंडा के लिए रात 10 बजे चंडीगढ़ एक्सप्रेस चलती थी, जो बठिंडा से PASSENGER के रूप में श्रीगंगानगर सुबह 10 बजे पहुँचती थी, (वर्तमान कालका बाड़मेर; एक्सप्रेस)  उस समय बठिंडा- सूरतगढ़-बीकानेर-जोधपुर-बाड़मेर METER-LINE थी, पूछताछ पर लिखा था- 31.12.73 को बठिंडा की तरफ कोई गाड़ी नहीं है, पहले तो हम निराश हुए, फिर मैंने कहा कि, रात 2 बजे अम्बाला फिरोजपुर पैसेंजर वाया बठिंडा जाती है, वह तो अगला दिन हो जायेगा, हम पुनः आशान्वित हो गए, नंगल की बस सुबह 4 बजे जानी थी, 

हमने होटल में खाना खाया, मैंने और कैलाश ने MUTTON खाया, तीसरे साथी ने पालक-पनीर खाया, कुल 9 रुपये 60 पैसे, मुझे याद है, हम तीनों ने FILM यादों की बारात देखी{धर्मेन्द्र, विजय अरोड़ा, अजीत, सत्येन कप्पू, जीनत अमान, नीतूसिंह, नंदा, आमिर खान (मास्टर आमिर )} इसी दौरान हमने एक-दूसरे  को HAPPY NEW YEAR भी कहा;   रात 1 बजे STATION पहुंचे तो फिर लिखा था, बठिंडा की तरफ गाड़ी नहीं है, मैंने ALL INDIA RAILWAY TIME-TABLE ख़रीदा कैलाश ने उस पर हम तीनों के नाम और तारीख लिखी; मैंने उसे लगभग 1990 तक संभल कर रखा था;  

नंगल वाले साथी को 4 बजे से पहले ही बस मिल गयी; हमें पता चला की गंगानगर की सीधी बस नहीं है, पटियाला से मिल जाएगी , करीब 4.45 बजे हमें पटियाला की बस मिली, जब तक पटियाला पहुंचे, गंगानगर की बस जा चुकी थी, बठिंडा की बस पकड़ी, जो संगरूर सुनाम होती हुई आई; बठिंडा से गंगानगर की बस तो मिल गयी, लेकिन गंगानगर पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी; आगे साधन नहीं था, हम दोनों RAILWAY-STATION के सामने एक होटल में चारपाई बिस्तर लेकर सो गए, शायद 2-2  रूपये, या फिर कम में. 

 सुबह बस पर हम रायसिंहनगर पहुंचे , विजयनगर की बस पकड़ी , अम्बाला में मैंने कैलाश को जो PEN दिया था, वो नीरुबाला जौहर का था; मैं उहापोह में था कि, डोईवाला जाकर नीरू को लौटाना  है; आखिर मैंने जी कड़ा करके कैलाश से PEN वापस ले ही लिया, पर मन में ग्लानि थी कि, कैलाश क्या सोच रहा होगा ?  नानुवाला के अड्डे पर मैं उतर गया; कैलाश मिड्ढा विजयनगर चला गया, 

 बादमें  कैलाश मिड्ढा से मुलाकात या बात नहीं हो पाई, 2001 में, जब मैं अनूपगढ़ नायब-तहसीलदार था, तो पता चला की, वो सूरतगढ़ THERMAL में है, मैंने एक POST-CARD लिखा था, जिसका जवाब नहीं आया; सितम्बर 2012 में विजयनगर आने के बाद पूछताछ की तो पता चला, वो दिल्ली चले गए, फ़ोन नंबर जानने की कोशिश की पर पता नहीं लगा;

जीवन के सफ़र में राही,
 मिलते हैं बिछुड़ जाने को !
 और दे जाते हैं यादें,
जीवन भर तड़फाने को !


जयहिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
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