मेरे मझले मामा श्री केदारनाथ जी को पारिवारिक दुश्मनी के कारण किसी ने धीमा ज़हर दे दिया था. वे अक्सर बीमार रहते थे. यद्यपि मैं छोटा था, तथापि घरेलु चर्चाओं से मुझे इन बातों का एहसास था.
एक होली के दिन शायद 1965; मामाजी को ग्लूकोज़ इत्यादि चढ़ाया जा रहा था, वे गली की और खिड़की के पास चारपाई पर लेटे थे, बाहर से उन पर रंग के छींटे पड़ गए, और नाम मेरा लग गया. छोटा होने के बावजूद मैं बार बार सफाई देना चाह रहा था, पर कोई भी भी मेरी बात पर ध्यान नहीं दे रहा था, और मैंने अपने आप को निस्सहाय पाया.
1965 में मेरे चाचा श्री बालकृष्णजी उनको साथ लेकर; उनके चचेरे भाई श्री रामपाल सेठी के पास कश्मीर स्वस्थ्य लाभ के लिए गए. उन्हें लाभ नहीं हो पाया और 1965 की लड़ाई से पहले उनका कश्मीर में ही देहांत हो गया. उसके बाद मेरे ननिहाल पूरी तरह से नानुवाला छोड़ कर भानियावाला (देहरादून) चले गए
1965 में मेरे चाचा श्री बालकृष्णजी उनको साथ लेकर; उनके चचेरे भाई श्री रामपाल सेठी के पास कश्मीर स्वस्थ्य लाभ के लिए गए. उन्हें लाभ नहीं हो पाया और 1965 की लड़ाई से पहले उनका कश्मीर में ही देहांत हो गया. उसके बाद मेरे ननिहाल पूरी तरह से नानुवाला छोड़ कर भानियावाला (देहरादून) चले गए
मेरे चाचा श्री बालकृष्ण जी का देहांत 05.05.2012 को हनुमानगढ़ में हो गया.
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ