रविवार, 18 अगस्त 2013

YAADEN (102) यादें (१०२)

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उसी दरम्यान बड़े मामाजी नानुवाला आये, उनका बड़ा लड़का राजीव (BINTU) भी साथ था; वापसी उनको दोपहर 1 बजे वाली गाड़ी से जाना था; उन्होंने मुझे राजीव के साथ लेकर रायसिंहनगर RAILWAY STATION पर पहुँचने को कहा; मैं पहुँच कर उन्हें ढूंढता रहा; वे नहीं मिले, इतने में गाड़ी आ गयी; मैं राजीव को लेकर PLAT-FORM से बाहर पश्चिम दिशा वाले EXIT के पास खड़ा होकर प्लेटफार्म पर निगाह करता रहा; गाड़ी निकल गयी; मामा जी आकर मुझे नाराज़ हुए; कि PLAT-FORM से बाहर क्यों आया ? मैंने जवाब दिया EMERGENCY लगी है , बिना PLAT-FORM TICKET अन्दर खड़े नहीं हो सकते !
फिर टिकेट वापस करके वे बस पर गए !
पर यह तो मानना ही पड़ेगा कि आपातकाल में रेलें समय पर आती थीं; दुकानों पर STOCK की उपलब्धता और खुदरा दर प्रतिदिन लिखी मिलती थी; ठीक 10 बजे कर्मचारी कार्यालयों में बैठे मिलते थे; 
उस दौर में सबसे ज्यादा शोषण छोटे किसानों का हुआ, जिन्होंने थोड़ी जोतें होने के कारण या तो अपने टुकड़े अनुसूचित जाति के लोगों को बंटाई पर दिए और काश्त के लिए उन्हें रुपये-पैसे की मदद की; दूसरा वे भी जिन्होंने अनुसूचित जाति के लोगों की ज़मीन हिस्से ठेके पर ली, और उनको साथ रखकर काश्त करवाने में सहायता की;
इस तरह सामान्य जाति वर्ग के छोटे कृषक बुरी तरह प्रताड़ित हुए ! इससे गावों में चला आ रहा पुश्तैनी सौहार्द काफी डांवाडोल हो गया !  खासकर छोटे तबके के किसानों ने अनुसूचित जाति के मजदूर वर्ग से सम्बन्ध लगभग तोड़ लिए थे !


जयहिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ 
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