शायद मैं 5 या 6 साल का था . चाचाजी श्री बाल कृष्ण और बड़े मामाजी स्वर्गीय श्री वेद प्रकाश ने सिनेमा देखने रायसिंहनगर जाने का कार्यक्रम बनाया. मैं इनके साथ हो गया. मुझसे पीछा छुड़ाना मुश्किल होगया था. हम तीनो घर से चल कर नहर तक पहुँच गए. उस दिन नहर सूखी थी. पश्चिमी किनारे वाली दो बेरियों के नीचे हम तीनो खड़े थे. मैं नहर पार करने की जिद कर रहा था. चाचाजी ने चाल चली और मुझे कहा घर जाकर भरजाई (मेरी माता) को कहो -चाय बनाओ, चाय बनाओ फिर चाय पीकर चलेंगे मैं वापस घर आकर माँ को चाय बनाने के लिए कहने लगा तो माँ ने हँसकर मुझे गले लगा लिया और मैं समझ गया था की वे मुझे बेवकूफ बनाकर सिनेमा देखने चले गए.
इस पहली ज्ञात बेवकूफी की याद अक्सर गुदगुदा जाती है.
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
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