रविवार, 11 दिसंबर 2011

YAADEN (13) यादें (१३)

तक़रीबन स्कूल बनाने के वक़्त ही हमारे घरो के नोजवानो ने मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया मेरे चाचा मामा उनके संगी साथी व हम उम्र इनमें बड़ी उम्र के ठाकुर बलवंत  सिंह जी को प्रधान बनाया गया नहर से मशरक  व  स्कुल  से  जनूब में बनाया गया दुसरे तबके के लोग भी कुछ हद तक इसमें शामिल थे. रोजाना सुबह-शाम के अलावा मंगल के रोज़ शाम को खास कीर्तन भजन में देर तक औरतें
बच्चे शिरकत करते थे* शुरू में पंडित पुरुषोत्तमदास जी पूजा पथ करते थे उनके दिल्ली चले जाने के बाद ठाकुर बलवंत सिंह जी, मनोहरलाल जी, बलदेव सिंह जी, जीवनसिंह जी, भी ईद जिम्मेवारी को निभाते रहे. जन्माष्टमी सालाना ज़लसे के तोर मनाई जाती थी महिना  भर  पहले मिटटी
गोबर की लिपाई औरते  शुरू  कर देती थीं
आदमी  कली व साफ सफाई करते कम उम्र  वाले झंडिया बनाते व लगते रायसिंहनगर से  PETROMAX व  केले के पेड़ लाये जाते पढ़ाकू बच्चे दीवारों पर अन्दर बहार मज़हबी व अदबी लिखावटें व चित्रकारी करते औरते मिलकर माम्दस्ते में मसाले कूटती भजन गाती और पंजीरी बनाती*
घरो से दरिया चादरें दुपट्टे व साडियां लाकर कृष्णजी का पलना सजाया जाता
तालीम याफ्ता व पदाकु जवान LOUDSPEAKAR मंगाया जाता शाम को सबसे पहले 
"आओ बच्चो तुम्हें दिखाएँ; झांकी हिंदुस्तान की !
इस मिटटी से तिलक करो; यह धरती है बलिदान की!!" 
बजाया जाता था*
रात को कंस और कृष्ण कीकथा होती आधी रात को चंद्रमा आने पर अर्घ्य देकर प्रसाद व चरणामृत बाँटते सरे बच्चे बहार खेलते सब तबकों के लोग कमोबेश उस
रात शिरकत करते थे --
दिवाली  पर  हर  घर से मंदिर व नहर  /डिग्गी पर एक दिया जलाया जाता था-
जय हिंद جیہینڈ  ਜੈਹਿੰਦ
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Ashok, Tehsildar Hanumamgarh 9414094991
http://www.apnykhunja.blogspot.com/

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