भारत सरकार ने 20 कश्मीरी परिवारों को 21, फरवरी १९५२ को नानुवाला में बसाया था; ऐसी चर्चा अक्सर हमारे घरों और रिश्तेदारियो में होती रहती थी. ब्राह्मणों में श्री पुरुषोत्तम दास (मदनलाल), श्री ताराचंद जगन्नाथ, तीरथराम, मीरचंद ( चेतराम मनोहरलाल ), रघुनाथदास ( चुन्लीलाल पूरनचंद ) खत्रियों में हरिचंद सेठी ( वेदप्रकाश केदारनाथ सुभाष चन्द्र मेरे नाना मामा ), देसराज बांसल ( रामजीदास बालकृष्ण मेरे दादा पिता व चाचाजी ), नन्दलाल ( मदनलाल मेरे पिता के चाचाजी व चचेर भाई ) ; दुर्गादास ( मेरी दादीजी के मौसेर ) , ईशरदास बंसीलाल सहगल; गोकलीदेवी तुली ( सेवकराम रामलाल दूर के रिश्ते से मेरे पिता की नानी ), धनीराम लाम्बा ( दूर के रिश्ते से मेरे पिता के मामा ), और कृष्णलाल दीनानाथ आनंद ; राजपूतों में गार्ड संतराम, लम्बरदार सूरमचंद, जीवनसिंह, ज्ञानचंद, बलदेवसिंह, ठाकरसिंह, बलवंतसिंह, लालदेवी,खत्रियों में गुरदित्तामल ( दूर के रिश्ते में मेरे पिता के मामा ) गोपालदास नानकचंद ओबेराय ( ईशरदास के ससुर-साला) व राजपूतों में गोकुलसिंह ध्यानचंद नारायण सिंह, प्रीतमसिंह चरणसिंह बाद में आये थे.
अक्सर घर में होने वाली चर्चाओं से मुझे पता लगा कि, अक्टूबर १९४८ में कबाइलियों ने के मुज़फ्फराबाद इलाके पर हमला कर दिया था. उस वक़्त सब ने माना था कि, दस बीस दिन जंगलों
में छुप छुपा के सब वापस अपने अपने घरो में आ जायेंगे; पर कुदरत को ऐसा मंज़ूर नहीं था. वे सब ५०० परिवार थे; जो भागते, दौड़ते; गिरते, पड़ते रावलपिंडी के रास्ते लाहौर आकर DAV कॉलेज के शिविर में रहे. बाद में सरकारी तौर पर अमृतसर के रास्ते तत्कालीन पूर्वी पंजाब के काँगड़ा जिले के योल कैंप ( वर्तमान हिमाचल ) में फ़रवरी १९५२ तक रहे. बाद में जब मैं अंग्रेजी पढने लायक हुआ, तो हमारे घर में योल कैंप काँगड़ा के राशन कार्ड पर मैंने खुद सब कुछ पढ़ा था. उस पर COMPANY COMMANDING OFFICER गुरबचनसिंह के अंग्रेजी में हस्ताक्षर थे, और नानुवाला पहुँचाने कि तारीख़ २१.०२.१९५२ दर्ज थी. वो कार्ड मैंने लगभग १९९० तक बहुत ही संभाल कर अपने दादा की निशानी के तौर पर रखा था. बाद में नौकरी के तबादलों के दौरान वह ग़ुम हो गया. हो सकता है, अब भी किसी गठरी में बंधा मिल जाये.
जय हिंद جیہینڈ ਜੈਹਿੰਦ
Hardik shubhkamnayen...
जवाब देंहटाएंFrom: SHARMA MAHAVEER PRASAD
जवाब देंहटाएंDate: 2011/9/21
Subject: Re: [APNY-BAAT] YADEN (2) यादें (१)
To: Ashok Kumar
ईश्वर की कृपा से आपका वह कार्ड, जो आपने लगभग १९९० तक बहुत ही संभाल कर अपने दादा की निशानी के तौर पर रखा था और बाद में नौकरी के तबादलों के दौरान वह कही ग़ुम हो गया, शीघ्र ही किसी गठरी में बंधा मिल जाये, और हमे भी यह देखने को मिले। शुभ कामनाओ के साथ!
महावीर प्रसाद शर्मा
COLD & SILKY SNOWFALL IN KASHMIR !
जवाब देंहटाएंHOT & RUDE SAND DUNES IN RAJASTHAN !!
nice masad ji . like it
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