कर्णाटक में हंसराज भारद्वाज , उत्तर प्रदेश में मोतीलाल वोरा , बिहार में बूटा सिंह हो या फिर हरयाणा , आंध्र प्रदेश लगभग हर प्रदेश में राजभवन की गुटुर गू केवल केंद्र की सत्ता के अनुसार चलती है . अपने प्रदेश की जनता द्वारा कूड़ेदान में फेंके गए OUTDATED मोहरों से केंद्र का सत्ताधारी दल दूसरे प्रदेशो के मुख्यमंत्रियों की नाक में नकेल डलवाता है . गैर राजनीतिक व्यक्तियों को जब जब भी राज्यपाल बनाया गया , उन्होंने हमेशा जनहित को ही प्रमुखता दी है . किन्तु राजनीती के पिटे हुए मोहरों ने हमेशा लोकतंत्र का गला ही घोटा है, और विलासिता का जीवन जिया है.
क्या ये लोकतंत्र है ?
जरा सोचें !!
जयहिंद